हर्षदेव ।
हर्षदेष के विषय में यद्यपि राजतरंगिणी में कुछ विशेष नहीं लिखा है किन्तु इस राजा का नाम भारतवर्ष में बहुत प्रसिद्ध है और एक इस बात की प्रसिद्धि पर कि रत्नावली इत्यादि काव्यग्रन्य उस के समय में बने थे इस राजा पर मेरी विशेष दृष्टि पड़ी। इस का समय विज्ञल और कालिदास वो समय के बहुत पीछे त्यष्ट होने से इस बात की सुभा को बड़ी चिन्ता हुई कि वह कौन पुण्यात्मा श्री हर्ष है धावक वे जिस की की प्राचन्द्रार्क स्थिर रक्खी है। वह श्री हर्ष निश्चय सम्मट कालिदासादि के पूर्व और वल्लराज के पश्चात्हु आ है। वंशावलियों में खोजने से कई हर्ष मिले । यथा मालवा को राजाओं में एका हर्षमेघ १८१ ई० पू० हुन्धा है। यह युद्ध में मारा गया और कोई विशेष कथा इसको नहीं है। छतरपुर से एक लिपि में श्री हर्ष नाम का एका हाजा विहल का पुत्र यशोधर्मदेव का पिता लिखा है। और यह लिपि श्री हर्ष के प्रपौत्र की सं० १०१८ की है । एक थीहर्प नेपाल का राजा ३६३१ ई.पू० हुआ है । एका विनामादित्य जिसका दूसरा नाम हर्ष था माटगुप्त के समय में हुआ। शक १००० में एक विकास और इस के कुछही पूर्व कान्यकुब्ज से एक हर्ष नामक राजा हुद्या । कालिदास और श्री हर्ष कवि भी इसी काल में थे। जैन लोगों ने लिखा है कि वाराणसी के जयन्तीचन्द्र नामक राजा के दरवार से श्रीहर्ष कवि था । (१०८८ शक) यह जैनों का आम है। और हर्षो'को छोड़ कर कान्यकुब्ज के हर्ष को यदि धावका कवि का वासी साने तसी कुछलड़ सब बातों की मिलेगी। जैसा रनावली में जिस वलराज का चरित है । वह कलियुग के प्रारम्भ में उरक्षेप का पुत्र वल्ल था। शुनकवंश का प्रथम राजा एक प्रद्योत हुश्रा है। [३००० ई० पू०] सन्धव है कि इसी प्रद्योत की बेटी वत्स की व्याही हो । धावक ने एक उदयन का भी वर्णन किया है वह पांडवों के वंश की सन्तावत्या हुशा था। यह सब अति प्राचीन हैं । इस से २६३१ ई० पू०को नेपालवाले श्री हर्ष के हेतु धावक ने काव्य बनाया है यह नहीं हो सकता।कानौज में जो श्री हर्ष नासक राजा था जिस की सभा में श्रीहर्ष नासक कवि का पिता रहता था वही श्रीहर्ष धावक का खासी था। छतरपुर की तिपि काकाल १०१८ है। चार पुश्त पहले यह काल ८५० संबत् में जा पड़ेगा । र शो-विग्रह के पहले कदाचित् राज विसव हुआ हो और श्रीहर्ष से यशोविग्रह