पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/१६९

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अपनी आखों से जला हुआ देख लिया । अस्तु ! ईश्वर की यही गति है ! ! नाशान्ताः सं. उन के प्रपौत्र और अपने फुफेरे भाई राय प्रह्लाद दास से कह कर उस संग्रह की भस्मावशिष्ट हड्डियों में से मैं टूटे फूटे दस पांच ग्रंथ ले आया हूं। इन में कुछ सर्कारी पुराने छपे हुए कागज और कुछ खंडित पुस्तक है। इस प्रबंध मे बहुत सी बात उनी सवों में से चुन कर लिखी जायगी इस हेतु उस मुगृहीतनामा महापुरुष का भी थोड़ा वृत्तांत खे बिना जी न माना । प्रकृति मनुसरामः मैने बादशाहदर्पण नामक अपने छोटे इतिहास मे अकबर और औरंगजेब की बुद्धि और स्वभाव का तारतम्य दिखलाया है। अब पूर्वोक्त राजा साहब की अंगरेजी कितावो मे सन् १७८२ से लेकर १८०२ तक के जो पुराने एशियाटि- क रिसर्चेज के नम्बर मिले है उन मे जोधपुर के राजा जशवंत सिह का वह पत्र भी मिला है जो उन्हो ने औरंगजेब को लिखा था और श्री युक्त राजा शि- वप्रसाद सी० एस० आई० ने भी अपने इतिहास में जिस का कुछ वर्णन किया है । तथा मेरे मित्र पंडित गणेश रामजी व्यास ने मुझको कुछ पुस्तकै प्राचीन दी है उन में महा कवि कालिदास के बनाए सेतुबन्ध काव्य की टीका मिली है जिस मे कुछ अकबर का वर्णन है । इन दोनो को हम यहां प्रकाश करते जिस से पूर्वोक्त दोनों बादशाहो का स्पष्ट चित्त और विचार Policy प्रकट हो जायगी। यह टीका राजा रामदास कछवाहे की बनाई है । अपना वंश उस ने यों लिखा है । कुलदेव को क्षेमराज उन के पुत्र माणिक्यराय फिर क्रम से मोकलराय धीरराय, नापाराय, ( उन के पौत्र) पातलराय, खानाराय, चन्दाराय और उद- यराज हुए। उन्ही उदयराज का पुत्र रामदास हुआ जो सर्व भाव से अकबर का सेवक है । अकबर के विषय मे वह लिखता है। श्लोक। आमेरोरासमुद्रादवति वसुमतौं यः प्रतापेन तावत्, । दूरे गा.पाति कृतमोरपि करसमुचत्तीर्थवाणिज्य वृतयोः । अप्यशोषीत् पुराणं जपति च दिनकृन्नाम योगं विधत्ते ।