[ २४ ] संबनाओं के काभी किसी को कार्णगोचर होने की संभावना नहीं थी किन्तु भट्ट कविगण को वर्णना प्रभा में मिवार राजवंश के प्राचीन काल के वह सन नाम चिरस्मरणीय हो रहे हैं। - इस १०२४ खंवत् समय में वलीदखलीफा के सेनापति महम्मद बिन्का- सिम ने भारतवर्ष में श्राकर सिन्धु देश जय किया था। इस के पहिले मोरी. वंशीय मानराजा की समय जिस समय राजा ने चितोरनगर आक्रमण किया था और बाप्पा कार्टक जो पराजित हुना था; वह अनुमान होता है कि यही बिन वासिम है। . बाप्पा और यति कुमार के मध्यवर्ती 2 राजा ने चिलोर में राजत्व किया था। उस समय से दो शत वर्ष के मध्य में 2 जन राजा का दाजन असम्भव नहीं। तदनुसार मिवार के इतिवृत्त का निन्नीता चार पुधान काल निरूपित हुआ। पुथम, कानकासेन का काल १४४. द्वितीय, शिलादिता और बलभीपुरविनाश का काल ५२४ । टतीय बापपा के चितोर प्राप्ति का काद पृष्ठाव्द ७२८ । चतुर्थ शक्तिकुमार का राजत्व काल खुष्ठाब्द १०६८ । वतीय अध्याय । दाप्पा और समर सिंह को मध्यवर्ती राजगगा, बाप्पा का वंश, अरब जाति के भारतवर्ष आक्रमण का बिबरण, ससलमानगण से जिन सब राजा: शों ने चितीर नगर रक्षा किया था उन लोगों की तालिका। .. ७८४ संवत् में बाग्पा को चितोर सिंहासन प्राप्त हुआ था। मिवार के इतिवृत्त में तत्परवर्ती प्रधान समय समर सिंह का राजत्व काल-संवत् १२४८ । अतएव बाप्पा के ईरान राज्य गमन के समय ८२० संवत् से समर सिंह को समय पर्यन्त अट्टगग ो गन्यानुसार मिवार. राज्य का वृत्तान्त संपति प्रकटित होता है । समर सिंह का राजत्व काल केवल. मिवार के इतिवृत्ति का प्रधान काल नहीं, खपतः समुदय हिन्दू जाति को पक्ष में एक प्रधान समय है। उन को राजत्व समय में भारतवर्ष का राज किरीट हिंद के सिर से अपनीत हो कर तातारो मुसलमान के सिर में चारोपित हुआ था। बाप्पा के समर सिंह के मध्य चार शताब्दी काल का व्यवधान है। इस काल के मध्य में चितोर वो सिंहासन पर अष्टादश राजाओं ने उपवेशन किया था। यदिच उन लोगों का राजन का विशेष बिबरण प्राप्त नहीं होता, तो भी नितान्त नीरन में तत्तावत् काल उजवन करना उचित नहीं । उन शब राजा
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