[ २३ ] अंत्येष्टि क्रिया सम्बन्ध में उन के हिन्दू और म्लेच्छ प्रजागरण के सध्य तुमुल • कासह उपस्थित हुशा था, हिन्दू लोग उन का शरीर अग्निदग्ध और न्ले च्छ लोग मिट्टी में प्रोत्यित कारने को कहते थे। उभय दल ने इस विषय का बि- बाद कारते करते शब का आवरण खोल कर देखा शब नहीं है तत परिवर्त में कातिपय प्रपाल शतदल बिराजमान हैं। उन लोगों ने वह सब कमल लेकर बह में तोपन कर दिया था। पारस्य देश को नौशेरवां की और काशी के • प्रसिद्ध भगवता कबीर की अंत्येष्टि क्रिया का प्रवाद भी ठीक ऐसा ही है। सिवाड़ के रान वंश के प्रधान पुरुष बाप्पा का यह संक्षेपका इतिहास पवाटित किया गया। प्राचीन कालीन अन्यान्य राज पुरुष के मांति बाप्पा की कहानी भी सत्य मिथ्या से मिलित है किन्तु इस विचार को छोड़ वार चितौर के सिंहासन में सूर्यवंशी राजगण ने दीर्घ कालावधि जो शाधिपव्य किया था, उसं आधिपता का बाप्या ही से प्रारम्भ है इस कारण गिहलोट गण का चितौर का राजत्व कितने दिन का है यह निरूपण करने को बाप्पा का जनम काल का निरूपण करना अतान्त आवश्यक है। बलभी पुर २०५ संवत् में शिलादिता समय में विनष्ट हुआ था .। शिलादिता से बाप्पा दंशस पुरुष, परन्तु प्राशय का विषय यह है यिा उदयपूर वो राज भवन की वंध पत्रिका में बाप्या का जनम काल १८१ संवत में लिखा है। विशेषतः . चितोर की एका खोदित लिपि से प्रकाश हुआ था कि ७७० संवत् में चितौर नगर मोरो वंशीय मान ताना.को अधिकार में था। इसी मान राणा के समय में असभ्य गण ने चितोर नगर श्रामण किया था। उन लोगों को परासस कारक उसको पश्चात बाप्पा ने पञ्चदश वर्ष को अवस्था में चितौर का चिहा- सन प्राप्त किया था । इस कारण ईदृश विवरण ले वाप्पा का जनम काल १८१ संवत् किसी प्रकार स्लोलत नहीं हो सता ? परन्तु उदयपूर को राजवंधा के कुलाचार्य भट्ट गण पूर्वोत्ता समुदय घटना खीकार करको भी कहते है कि बाप्पा ने १८१ संवत् में जल ग्रहण शिया था। टाड साह ने अनेक अनु- सन्धान करके अवशेष में खौराष्ट्र देश में सोमनाथ के मन्दिर को एक बोदित लिपि से जाना था कि वल्लभी संवत् नास क्षा एक और भी संवत् प्रचलित था। वह लंवत् विक्रमादिता को संवत् से ३७५ बरस की पश्चात प्रारम्भ हुधा था, २०५ वसभी सम्बत् में बलभीपुर विनष्ट हुआ था, जुतां विमला दिता तो संवतानुसार उस के विनाश का काल ५८० हुषा जिस
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