[ १३ ] सीन्सरप जान हुवा फिर श्रीशंकर की स्तुति र वर पाय हारीत ऋषि तो नाग सिधाये और वाध्य ने राज्य की अपेक्षा करी इन्से उन को शंकर ने तदान यिा कि तेरा शनीर भिन्न शोर महत्तरगा पोर तुझे इस भर्त- अनि के पर्वत में महनन करने से बहुत गव्य सिलेगा जिस्से सेना एवान कर कम वित्तोड़ का राजा पपने अधिकार लें कोजियो गौर आज स तुमारे नास पर रावल पद प्रख्यात रहेगा यह लिंग प्रादुर्भाव बिक्रसार्क गतान्द २८० वैशाख घाणा १ को हुआ था सो उक्त महीने को हमी तिथि को शव भी प्रादुर्भावोत्या व प्रति वर्ष होता है फिर रावल वाष्य ने इष्टाज्ञा ले द्रव्य नि- प्यासनं कर सहत्तर सेना बनाय चित्तोड के राजा मानमोरी को जय किया और उसी दुर्ग को अपनी राजधानी बनाया इस सहिपाल ने सम- त भारतबर्ष को बिज- किया ॥" वापा के विपक्ष में ऐसे है अनेक पाश्चर्य उपाख्यान मिलते हैं। पृथिवी पर जितने बड़े बड़े राज बंश है उन में ऐसे कोई भी न होंगे जो कवि जनों की विचित्र कल्पना से पलंधत न हो क्योंकि उसमय में उन के विषय में विविध दैवी कल्पनाओं का प्रारोप ही मानों उनके प्राचीनता और गुरुत्व का सून था । रोम राज्य के स्थापन कर्ता रमलस देवता के पुत्र थे और वा- घिन का दूध पी कर पले थे. ग्रीस राज्य के इक्यूलिस और इङ्गलैंड राज्य के आर थर राजाओं के दैत्यौ से युद्ध इत्यादि अनेक अमानुष का प्रसिद्ध हैं। जगविजयी सिकन्दर को दो सींग थीं और फारस के अफरामियाव ने जव देव सदृश अनेक कस्य किए तो हिंदुस्तान के बडे बडे उदयपुर, नेपाल, सि- ता, कोल्हापुर, ईजानगर, डूंगरपुर, प्रतापगढ और अलीराजपुर इत्यादि राजबंशों के मन्तपुर वापा के विषय में विचित्र बातें क्षिरही हैं तो कौन पाश्चर्य की दात है। वापा सैकडों राज कुल के प्रादि पुरुष लोकातीत सं- खम भाजन और चिरजीवी फिर उनके चरित्र अलौकिक घटना से क्यौं न संघटित हों। ___ बापा वाल्व काल से गोचारण करते थे यह पूर्व में कह पाए हैं। कहते हैं कि शरत्काल में गो चारण के हेतु वन में गमन करके बापा ने एक साथ छ सौ कुमारियों का पाणिग्रहय किया । उस देश में शरद ऋतु में बालक और बालिका गन बाहर जार मला झूलते हैं । इसी रीति के अनुसार नगेन्द्रनगर के सोलही राजा की कारी कन्या अपनी अनेक सक्षियों के साथ
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