[८] राजा यंकरवसा.का समय भी दृष्टि देने के योग्य है। इस के पास ३०० हाथी लाख घोड़े और नौ लाख प्यादे थे। उस समय गुजरात में 'खालान बयान' का जोर था। दरद और तुरुष्क देश के राजा भारत में बड़ा उपद्रव सचाए हुए थे । लक्षियशाह रवानालखान का सर्दार था । (५ त० १५३ से १६० क्षो तक) इस अन्य में मुसल्मानों का वर्णन पहले यहीं पाया है। इस से स्पष्ट होता है कि ईसवो नवीं शताब्दी के अन्त तक जो सुसल्मान चढ़ाई कारते थे वे गुजरात की राह से करते थे उत्तर पच्छिम की राह नहीं खुली थी। इस तरंग में कायस्थों की बड़ी निन्दा की है (४ त० ६२५ झो० से और ५ त० १७८ क्षो. यादि) चतुर्थ और पञ्चम तरङ्गर में कई बात और भी दृष्टि देने के योग्य हैं। जैसे तांबे की 'दीनार' पर रानाओं का नाम सदा रहना । (४ त० ६२० मी. ) जहां पथिका टिकें उस स्थान का नाम गंज (४ त० ५८२ लो० ) रुपयों की इण्डिका (हुण्ही ) का प्रचार । (५ त० १५८ क्षो० ) मेष के ताज़ चमड़े पर खड़े होकर तलवार ढाल हाथ में लेकर शपथ खाना इत्यादि । (५ त०३३० स्लो०) सी तरंग में गानेवालों का नाम डोम लिया है। (५ त०३५८ श्लो०) यह दीनार गंन हुण्डी और डोम शब्द प्रय तक भाषा में प्रचलित हैं वरंच मीर हसन ने भी 'वडोमनपना लिरहा है। जैसा इस काल में रंडी और उन की बुढ़िया तथा भडुओं के समझने की और साधारण लोग जिस में न समझेर ऐसी एक भाषा प्रचलित है वैतीही उस काल में भी थी। गानेवाले को हेल गांव दिया गया प्रसकी उस काल की भाषा हुई 'वंगसह मुदिराणा' (५ त० ४०२ श्लो०) षष्ठतरंग में दिहारानी का उपद्रव और बहुत से राजाओं के नाम के पर्व में शाहि पद ध्यान देने के योग्य है। सप्तमतरंग (५३ श्लो० ) में हम्मीर नाम का एक राजा तुंग के समय में और ( १८० क्षो०) अनन्त के समय में भोज का राना होना लिखा है। मान ३ वर्तमान काल में रंडियों की भाषा का कुछ उदाहरण दिखाते हैं। नगर की वारबधूगण की संकेत भाषा-यथा-लूरा-पुरुष, लूरी-रंडी, चीसा-अच्छा बी- ला, बुरा, भीमटा, रुपया, पादि । ग्राम्य रंडियों की भाषा यथा-सेरुवा-पुरुष, सेकई-स्ती, कानेरी-रूपया, सेसिल-अन्जा है और छौलियायल्यः अर्थात् रुपया सब ठग लो।
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