[ ] के शीनर. ४१ अन्तरीन, ४२ सवर्ण. अमित्रजित्. वहदाज. ४३ धर्म, ४४ कतञ्जय, ४५ रणवय, मलय शाक्य, ४६ क्रोधदान. गाक्य सिंह, ४० अतुल, मेनजित, सट्रक कुन्टक, ४८ सुग्थ, सुमित्र। ___ महाराज सिंह के अन्य के अनुमार समिप के पोके महारित, अन्तरित, अचन मेन, कनक मेन, महामदनमेन, सुदन्त. वा प्रथम मोणादि- तय, (विजयमेन, वा पाय सेन, या विजयादित्य ) पद्मादित्यः शिवादि- ता, हरादित्य, मर्या दित्य, शिलादित्य, ग्रहादित्य. नागादित्य, मा. गादित्य, टेवादितय. पाणादित्य, कालभोन वा भोजादित्य, हितीय प्र. हादितय, भौर बापा । समित्र से महावत तक चार नाम नहीं मिलती इम क्रम से थोरामचन्द्र मे वापा भसी पीढ़ी में हैं, तक्षक मे ले कर के वा हुमान वा भानुमान तक पाठ राजानी का नाम कर बंगावनी में न मितता, अनेक ग्रन्य कारों का मत है कि मो तक्षक के समय मे ईरान लग तपकिस्तान इत्यादि देशों में इसका बंग राज करता था और तुरकिस्ता का प्राचीन नाम तन कस्यान वतन्नाले हैं और यनान में जो पतधर्क नाम राजा हुया है वह भी एसो तनक या नामान्तर मानते हैं। गजा जयसिंह का मत है कन कमेन के ममय में अर्थात् मन् । ४४ यौराष्ट्र देश में इस बंग का राज हुआ और वही लिखते हैं कि विजय प्रायमेन का नामान्तर नौशेरवां था हमने विजयपुर वा विगटगढ़ वमा पौर मन् ३१८ में वनभोणक स्थापन किया। उन्दी का मत है कि शिना स्य को यवनो ने जीता और सौराष्ट्र में यह गज तिन मित्र होगया ५ ४म का पुत्र केशव वा गोप वा ग्रहादित्य मांडेर के जगन में रहा और के पुत्र नागादित्य के ममय मे इस वंश का गोत्र गहलोत कहलाया फिर प्राणादित्य ने मेवाड में अपने वंश की पहली राजधानी पाश। -..-....................... ... ... ... .- . . .-..- .... .. . ... . ४१ ना. रेख । ४२ ना. सतुपा । ४३ ना. वादि। ४४ कोई अन्य कहते हैं कि यहो कतन्नय प्रथम मोराट्र में पाया ॥ ४५ ना. जयग ४६ ना० शुओदन इमो का पुत्र प्रमिर शाक्य सिंह है, जो भादी सदो ५ जन्सा था, और वौइ और जैन के नाम में जिसका मत संसार यो एक ति में व्याप्त है ॥ ४७ ना• लाइन वा मङ्गल वा मिल वा रातुल ॥ ४८ ना रत वा मुराद कहते हैं. किसी के नाम में सौराष्ट्र दंग नमा है।
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