पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/१४२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

व्यारठ, त्रिशंकु, हरिश्चन्द्र, देहिताम्स, हारीत, १४ चुचु, विजय, १५ रुरुक, हक, ६ वाद, सगर असमञ्जस, अंशुसान्, दिलीप, अगीरथ, श्रुत, नामाग, अब्ब- सीप, सिधुहिप, भयुताव, १७ ऋतुपर्ण, सर्वकास, सुदास, कल्लापपाद, १८ नमसका, १८ हरिकवच, २० दशरथ, इलिदथ, विश्वासह, २१ खहाड़, दी- र्घबात, व घु, अज, दशरथ, श्रीरास, २२ कुश, अतिथि, निषध, मल, नाम, पुण्डरीक, क्षेमधन्वा, २३ हारिक, अनीनन, दुरुपरिपात्र, २५ दल, २६ छल, उध, २७ वचनाभि, ३८ शंखनासि, २८ व्यु धिताभि, ३० विश्वासह, हिर- खनाभि, ३१ पुप्प, ३२ ध्रुबसंधि, ३३ रपव शीघ्र, २४ सक, प्रसव श्रुत्त, ३५ सुसाध, भामर्ष, ३६ महाश्व, हवाल, दशान, उरुक्षेप, वत्स, ब- त्सव्य ह प्रतिव्योम, ३७ देवकर, सहदेव, ३८ वृहदश्व, ३८ आनुरन, सुप्रतीक, सरदेव, सुनचन, ४० ना० सत्यव्रत। १४ ना० चस्प, किसी पुस्तक में चस्प के पीछे सुदेव-तब विजय लिहा है ॥ १५ ना० अरुक । १६ ना० बाहुक । १७ ऋतुपर्ण, के पीछे किमी पुस्तक में नल तब सबकास लिखा है ॥१८ ना० आम क । २८ ना० मूलक । २० दशरथ, और इन्निबथ दो के बदले किसी पुस्तक में ऐडाबिड एकही नाम लिरहा है ॥ २१ ना० रखरमाइः । २३ कुश के ससय से अनेक ग्रन्य- कार हापर की प्रकृति मानते हैं * २३ ना० देवानीक । २४ ना० अहीनग । २५ ना० बल । २६ ना० रणच्छल । २७ बजनाभि, के पीछे कोई अक तव शहनाभि को लिखता है ॥ २८ ना० सगण । २८ ना० विधृत । ३० ना० वि- पिताश्व । ३१ ना० पुष्य । ३२ ध्रु बसन्धि, और अपवमं के बीच में कोई सु- दर्शन नामक और एक राजा मानता है ॥ ३३ ना० अग्निवर्म । ३४ ना० मनु । ३५ ना० सन्धि। २६ ना० अवखान, इसी महाख के पीछे बिश्वबाहु प्रसेन नित और तक्षक नामक तीन राजा हहहाल के पहले अनेक ग्रन्थकार मानते है और कहते है कलियुग का प्रारम्भ इसी के समय से हुभा ॥ ३७ प्र- तिव्योम और देवकर के बीच में कोई भानु को भी जोडते है इसी देवकर का नामान्तर दिवाकर है॥ ३८ सहदेव, तव वीर; तब हहदश्व यह किसी का सत है॥३८ ना० आनुमत, वा यानुसान, ग्रन्यकारों का मत है कि ईरान का जो प्रसिद्ध बहमन नामक हुआ था वह यही आनुमान है, इसके और सुप्रतीक के बीच में कोई प्रतियाख नामक राजा मानते हैं ॥ ४० ना० पुश्चर ___इन्ही कुश का एक पुत्र कूर्म नामक था जिस से कालवाहे लोग अपनी बंशावली सान है।