शाक्यसिंह को हुए पचास सौ वरस हुए। इसी समय में नागार्जुन नामक सिद्ध मो हुआ। इन के पीछे अभिमन्यु के समय में चन्द्राचार्य ने व्याकरण के मा-भाग्य का प्रचार किया और एक दूसरे चन्द्रदेव ने बौद्धों को जीता। कुछ काल पीछे मिहिरकुल नासक एक राजा हुथा। इस के समय की एक घटना विचारने के योग्य है। वह यह कि इस की रानी सिंहल का बना रेशमी का-
पडा पहने थी उस पर वहां के राजा के पैर की सोनहली छाप थी। इस पर कश्मीर के राजा ने बड़ा क्रोध किया और लङ्गा जीतने चला । तब लद्भावालों ने 'यमुषदेव' नामक सूर्य के विश्व के मापे का कपडा दे कर उस से मेल किया (१ त० ३०० शोन) एस से स्पष्ट होता है कि चांदी सोने से कपडा छायना लंका में तभी से प्रचलित था। अद्यापि दक्षिण हैदरावाद में (संवा
के समीप ) छापा पच्छा होता है। उस समय तक भाह ( Bhatti ) दारद ( Dardareans) और गांधार (Kandharians ) ब्राह्मण होते थे।
फिर सुंजीन नामक राजा के समय में चन्द्रक कवि ने नाटक बनाया।(२ त० १६ लो०] इसके समय में एक बात पौर भाश्चर्य की लिखी ई कि एक समय बडा वास्त पड़ा था तो परमेश्वर ने कबूतर परसायं थे। (२ त०५१ श्लो० ) और हर्ष नामक एक कोई और राजा उस काल में हुआ था ।इम राना के कुछ काल पीछे सन्धिमान राजा की कथा भी बड़ी पा र्य की लिखी है कि वह सूली दिया गया था और फिर जी गया इत्यादि। विधा-मादित्य के मरने के थोड़े ही समय पीछे प्रवरसम राजा ने नाष का पुल बांधा और वह स्खलाट में शूल की भांति तिलक देता था ( एस. २५६ और ३६७ श्लो०)
जयापीड राजा का समय फिर ध्यान देने के योग्य है। क्योंकि इस के लमय में कई पण्डित हुए हैं। निन में शंकु नामक कवि ने मन्म और उत्पल।की लडाई से भुवनास्यु दय नामक काव्य बनाया था। ( ४ त० २५ हो.) इसी के समय में वामन नामक याकरण पण्डित हुआ है जिस की कारिका प्रसिद्ध है । (४.त० ४८७ से ४८४ शो० तक)। इसी वामन का बोपदेव ने खएन किया है (वोपदेव महाग्राहग्रस्तो बामने कुंजरः (इस से बोपदेव ज- यापीड़ के समय (७५ ई०) के पीछे हुए हैं यह सिद्ध होता है । जयापीड ने हा का फिर • वसा कर मन्दिर बनवाए। (४ त० ५६० मो०) और उस समय नेपाल का राजा अलुड़ि था । (४ त० ५२८ लो०)