उदयपुरोदय । मेवाड का शुद्ध नाम मैदपाट है। और यहां के महाराज की संज्ञा सी- सौधिया है। कहते है कि इन के वंश में कोई राजा बडे धार्मिक घे । एक ससय वैद्यों ने छन्न औषध में मद्य मिला कर उन को पिला दिया क्योंकि जिम रोग में वे ग्रस्त थे उस की औषधि मद्यही के साथ दी जाती थी । श- रोर खस्स ह ने पर जब उन्हो ने जाना कि हम ने मद्य पिया था, तो उस के प्रायश्चित के हेतु गलता हुआ सीसा पीकर प्राण त्याग किया । तभी से सी- सोधिया इस वंश को संज्ञा हुई । यही वंश भारतखण्ड में सब से प्राचीन और मब से माननीय है। इसी वंश में महात्मा मांधाता, मगर, दलीप, भ- गीग्ध, हरिचन्द्र, रघु आदि बड़े बड़े राजा हुए हैं और इसी वंश में भगवान श्रीरामचन्द्र ने अवतार लिया है। इसी वंश के चरित्र में कालिदास भवभू- ति वरच व्यास वाल्मीकि ने भी वह अन्य वनाए हैं जो अब तक भारतवर्ष के साहिता के रन भत है। हिन्दुस्तान में यही वंश ऐसा वचा है जिस में लोग सतायुग से 'कर अब तक बरावर राज्यसिहासन पर अचल छत्र के नीचे बैठते आए । उदयपुर वालेही ऐसे है जिन्हों ने और और विलायत के बादशा- हों को वैटी ली पर अपनी बेटी सुसलमान को न दी । ___ आज हम उसी वडे पराक्रमशाली प्राचीन वंश का इतिहास लिखने बैठे ।इस में हमा मुख्य सहायक ग्रन्य टाडसादिव का राजस्थान, उद-
- कन्ते :: कि जब औरङ्गजेब ने उदयपुर घेर लिया था तव राना साह-
व शिकार खेलते थे और उन को वादशाह की दो वेगम फौन से विछडी जंगल में भटकती हुई मिलीं जिन को राना ने अपनी वहिन कह के पुकारा और रक्षापूर्वक लाकर उन को औरङ्गजेब को सौंप दिया । मुसलमान त- वारीख लिखने वालों ने अपनी क्षति इसी बहाने पूरी की और कहा कि उदयपुर पलों ने वेटी नहीं दी तो क्या हुआ बादशाह बेगम को अपनी ब- हिन बनाया तो सहो । वरंच इसी हेतु उम दिन से उन वेगमों का नाम उ- दयपुरी बेगम लिखा गया। भाषा ग्रन्थों में इन बेगमों के नाम रंगो चंगी बेगस लिखे हैं।