पृष्ठ:काश्मीर कुसुम.djvu/१३३

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। १८ ] अहमदशाह दुर्गनो इम बात से ऐसा क्रोधित हुआ कि बहुत बड़े सेना ले कर फिर हिन्दुस्तान में आया। पेशवा ने यह सुनकर अपने भतीजे सदा- शिवगव भाऊ के साथ तीन लाग्नु सैना और अपने पुत्र विश्वास राव को उम मे युद्ध करने को भेजा। मरहट्ठों ने पहले दिलो को लूटा फिर पानीपत के पास डेरा डाला। पहले कुछ सुन्नह को बात चीत हुई थी किन्तु अन्त को जनवरी १७६१ को दोनों दल में घोर युद्ध हुआ जिस में दो लाख से ऊपर मरहठू मारे गए और अहमदशाह की जय हई। इस हार से सरहट्ठों का उत्साह वल प्रताप मभी नष्ट हो गये और साथ ही सुगन्नों का राज्य भी अस्त हो गया। शुजाउद्दौला ने आलमगीर के बेटे अलीगौहर को शाहा- लम के नाम मे वादशाह बनाया ( १७६१ )। यह 'दस बरस तक तो पहले नजीवहौला के डर मे एलाहाबाद में पड़ा रहा फिर उस के मरने पर मरहट्ठों की महायता से दिल्ली में गया। थोडे ही दिन पीछे गुन्नामकादिर नामक नजीबुद्दौला के पोते ने दिल्ली लूट कर वादशाह को पृथ्वी पर पटक कर छाती पर चढ़ कर कटार से प्रांख निकाल ली और हाथ बांध कर वहीं छोड दिया। महाजो सेन्धिया यह सुन कर दिल्ली में आया और गुनामका- दिर को पकड़ कर बडी दुर्दशा से माग और अन्धेशाह आन्नम को फिर से तन पर बैठाया। चागे ओर उपद्रव था। १८०३ में लार्ड लेक ने अगरेजी सेना लेकर दिल्ली को रहट्ठों के हाथ से लिया और शाहआलम को पिन- शन नियत कर दी। शाहआलम को अकवर मानी र उम को वहादुर शाह हुए। ये लोग ढेि सोलह लाख की जागीर और पिनशनं भोगते रहे। अन्त को वह भी न रहो । यो मुमल्मानों का प्रताप सर्य आठ सौ वरस तप कर अस्ताचल को गया। कनकपात्र रत नगरित फेंकत जौन उगार । तिनकी आजु समाधि पर मूतत स्वान सियार ॥ जे सुरज मों वढि तपे गरजे सिंह समान । सुज वन्न विक्रम पारि निज जोत्यो सकाल लहान ॥ तिनकी आजु समाधि पैं वैट्यो पूछत काक । 'को' ही तुम अब 'का' भए 'कहां' गए करि साक ॥ ॥ इति ॥