वात पर नादिर ने ऐमा क्रोध किया किमारी दिल्ली को काट देने का हुकुम दिया. देट पहर तक शाक की भाति नाख मनुथ के ऊपर काटे गए अन्त को महम्मदशा: रोता हुआ इसके मामने गया'तब नादिरशाह ने आजो दिया कि काटना बन्द हो जाय. उसकी आज्ञा ऐसी मानी जाती थोकि उमके प्रचार होते ही यदि किसीने किमी के शरीर में आधी तलवार गडाई यो तो वही से उठाली. दिली को यों उजाड-मारके बहावन दिनविरह. कर सत्तर करोड का मान साथ लेकर नादिर अपने मुल्क को लौट गया ( १७३८ ). कुछ दिन पीछे उसके देशवालों ने नादिरशाह को मार डाला और अहमदशाह नामक उसका एक मैन्याध्यक्ष सन्दहार बलरहसिन्ध और कश्मीर का बादशाह बन बैठा. लाहौर लेते हुए ( १७४७) हिन्दुस्थान में भी उसने प्रवेश करना चाहा किन्तु मुहम्मद शाह के पुत्र अहमद शाह ने मरहिन्द में युद्ध करके उसको पीछे हटा दिया. इस के पूर्व (१७४० ) बाजी राव मर गए थे किन्तु उन के पुत्र बालाजी राव ने मालवा ले लियाथा: १७४८ में सुहम्मदशाह मर गया. यह अति रागरंगप्रिय पौर विषयों था. इम का पुत्र अहमदशाह बादशाह हुआ. इसके ममय में कहेली ने बडी उप- द्रव उठाया था किन्तु मरहट्टों ने इन का दमन किया. १७५४ में गाजियुद्दीन न अहमदशाह को अन्धा और कैद कर के जहांदारशाद के एक लडके को तर पर बैठाया और थानमगीर मानी उस का नाम रखा. गोनियुद्दीन ने अहमदयाइ दुर्गनी के पंजाव के मदार को मा को कैद कर लिया था. इस बात से अहमदशाह ने ऐसा क्रोध किया कि बडी भारी सैना लेकर मोधा दिन्नी पर चढ दौडा. गाजियुद्दीन बडी दीनता से उस के पास हाजिर हुआ. किन्तु वह बिना कुछ लिए कर जाता था. ( १७४५) बल्लभगढ और मथुरा लूटी और काटी गई. दिल्ली और लखनऊ के लोगों से भी रुपया वसन किया गया. अन्त में नर्ज वुद्दौला को दिल्ली का प्रधान मन्त्री बना कर अपने देश क नौट गया. गाजियुद्दीन ने मरहट्टों से सहायता चाही और पेशवा का भाई रघुनाथ राव दिनी पर चढ़ आया. नजीबुद्दौला भाग गया और गाजियुद्दीन फिर वजीर हुआ. इधर मरहट्टी ने अहमदशाह दुर्रानी के लडके तैमूर को पंजाव से निकाल कर वह देश भी अधिकार में कर लिया अर्थात् अव मरहट्टे सारे भारतवर्ष के अधिकारी हो गए. इसी समय गाज़ि- युहीन ने बादशाह को मार डाला पौर प्राप दिजो छोड़ कर भाग गया ।
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