इस की मृत्यु पर इस का पुत्र जगविख्यात अबुल मुज़फ्फ़र जलालुद्दीन सुहम्मद अकबर शाह साढ़े तेरह बदस की अवस्था में बादशाह हुा । बैर- सखां खानखाना राज्य का प्रबन्ध करता था। बदनशां के बादशाह सुलैमा- न शाह ने काबुल दखल कर लिया है, यह सुन कर बैरम अकावर को ले कर पंजाब को मार्ग से कानुन गया। इधर हैमं* बमियां ने तीस हजार सैन्य ले कर दिल्ली और आगरा जीत लिया और पंजाब की भीर अकबर के जीतने को आगे बढ़ा । वैरमरनां ने यह सुन कर शीघ्र ही दिल्ली को बाग मोड़ी और पानीपत में हैमं से घोर युद्ध हुप्रा जिस में हेमं सारा गया और बैरम की जीत हुई। इस चय से बैरम को इतना गर्ब हो गया कि वह अकबर को तुच्छ समकने लगा । परिणामी अकबर उस की यह चाल देखकर बहाने से निकाल कर दिल्ली चला पाया और वहां (१५६० ) यह इश्तिहार जारी किया कि सल्तनत का सब कास उसने अपने हाथ में ले लिया है बैरम इस बात से खिसिया कर बागी हुघा किन्तु बादशाही फौज से हार कर बाद- शाह को शरण में पाया। अकबर ने उस के सब अपराध क्षमा किए और भारी पिनशन नियत कर दी। किन्तु बैरम को उसी वर्ष मक्का जाती समय मार्ग में एक पठान ने मार डाला। इसी बैरम का पुत्र अबदुलरहीमखा खानरताना संस्कृत और हिन्दी भाषा का बड़ा पंडित और कवि हुआ है। यों अट्ठारह बरस को अवस्था में अकबर इतने बड़े राज्य का खतंत्र कर्ता हुआ। इसने अपनी परंपारगामिनी बुद्धि से यह बात सोच लिया कि बिना हिन्दुत्रों का जी हाथ में लिए उस की राज्य श्री स्थिर नहीं रह सकती। इस ने हिन्दू सुसल्मान दोनों को बड़े बड़े काम दिए । योधपुर और जयपुर के राजाओं की बेटियों से व्याह किया। मत का आग्रह छोड़ दिया। यहां तक कि कई हिन्दुओं के तोड़े हुए मन्दिर इस ने फिर से बनवा दिए। लखनज जौनपुर ग्वालियर अजमेर इत्यादि इस के राज्य के प्रारम्भ ही में इस के प्रा. धीन हो गए थे। १५६ १ में मालवा भी जो अब तक राजा बाजबहादुर के अधिकार में था इस के सैनापति ने जीत लिया। राजा के पहले ही पकड़ जाने पर उस की रानी दुर्गावती बड़ी शूरता से लड़ी। दो वेर बादशाही
- इस का वास्तव में बसन्तराय नाम था । कई तवारीखेां में इस की
जाति टूसर लिखी है । किन्तु अगरवालों के भाट इस को अगरवाला कहते हैं