रहता है और उस महास्मृति का, प्रकृति की स्मृति का, एक अंग है। इस महा मन और महा स्मृति का आह्वान प्रतीको द्वारा उसी प्रकार हो सकता है जिस प्रकार तांत्रिका के विविध चक्रों या यन्त्रों द्वारा देवताओं का"। इस प्रवृत्ति के अनुसार वे रचना में प्रवृत्त करनेवाली कवियों की प्रतिमा के जगने को वही दशा कहते हैं जिसे सूफी 'हाल आना' कहते हैं, जिसमें कुछ घड़ियों के लिए कवि की अन्त सत्ता ईश्वरीय सार सत्ता (Divine Essence) में मिल जाती है।
इस धारणा के अनुसार काव्य का लक्ष्य इस जगत् और जीवन से अलग हो जाता है। प्रकृति के जिन रूपों और व्यापारों का कवि सन्निवेश करेगा वे 'प्रतीक' मात्र होंगे। कवि की दृष्टि वास्तव में उन प्रतीको के प्रति न मानी जाकर उन अज्ञात और परोक्ष शक्तियों या सत्ताओ के प्रति मानी जायगी जिनके वे- प्रतीक होगे। यदि वे प्रकृति का वर्णन करें तो उनका अनुराग
(1) *That the bɔrders of our mind are ever shifting, and that many minds can flow into one annther, as it were, and create and reveal & single mind, a single energy
(2) That the borders of our memories are as shifting,and that our memories are a part of obe great memory the memory of Nature her self
(3) That this great mind and great memory can be evoked by symbols
-WB Yeats: "Ideas of Good and Evil"