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काव्य में रहस्यवाद


पतंग इत्यादि कुछ विशेष वस्तुओं पर अन्योक्तियाँ क्यो इतनी मर्मस्पशिणी हुई हैं ? इसलिए कि उनमें प्रतीकत्व है। उनके नाम मात्र हमारे हृदय मे कुछ बंधी हुई भावनाओ का उद्बोधन करते हैं। इसी प्रकार फारसी की शायरी मे गुल बुलबुल, शमः परवानः, शराब प्याला आदि सिद्ध प्रतीक हैं।

यहाँ तक तो काव्य मे प्रतीको के सर्व-सम्मत सामान्य व्यवहार का उल्लेख हुआ। पर यह कायदे की बात है कि जब कोई बात 'वाद' के रूप मे किसी सम्प्रदाय विशेष के भीतर ग्रहण की जाती है तब वह बहुत दूर तक घसीटी जाती हे-इतनी दूर तक कि वह सबके काम की नहीं रह जाती-और उसे कुछ विलक्षणता प्रदान की जाती है । रहस्यवाद को लेकर जो 'प्रतीक- वादी' सम्प्रदाय योरप में खड़ा हुआ उसने परोक्षवाद (Occultism) का सहारा लिया। प्रतीक के रूप मे गृहीत वस्तुओं मे भावों के उद्बोधन की शक्ति कैसे संचित हुई इसका वैज्ञानिक ऊत्तर यही होगा कि कुछ तो उन वस्तुओं के स्वरूपगत आकर्पण से, कुछ चिर परिचित आरोप के बल से और कुछ वंशानुगत वासना की दीर्घ-परंपरा के प्रभाव से । पर रहस्यवादी इसका उत्तर दूसरे ढंग से देंगे।

वे कहेंगे कि "हमारे मन का विस्तार घटता बढ़ता रहता है और कभी-कभी कई एक मन संचरित होकर एक दूसरे में मिल जाते हैं और इस प्रकार एक मन या एक शक्ति का उद्घाटन करते है । हमारी स्मृति का विस्तार भी ऐसे ही घटता बढ़ता