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काव्य में रहस्यवाद


ठीक-ठीक पहुँचा देना जिन्होंने वह अनुभूति या संवेदना जगाई है, कवि के लिए हम अधिक आवश्यक समझते हैं। सहृदय या भावुक पाठक अपनी अनुभूति का पथ बहुत कुछ आप-से-आप निकाल लेते हैं। इसी प्रकार सच्चे कवियो की अनुभूति का आभास बहुत कुछ उनकी वस्तु-योजना की शब्दभंगी में ही मिल जाता है।

भावो के लिए आलम्बन आरम्भ मे ज्ञानेन्द्रियाँ उपस्थित करती हैं, फिर ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त सामग्री से कल्पना उनकी योजना करती है। अतः यह कहा जा सकता है कि ज्ञान ही भावो के संचार के लिए मार्ग खोलता है। ज्ञान-प्रसार के भीतर ही भाव-प्रसार होता है। आरम्भ मे मनुष्य की चेतन सत्ता इन्द्रियज ज्ञान की समष्टि के रूप मे ही अधिकतर रही। पीछे ज्यो-ज्यो सभ्यता बढ़ती गई हे त्यों त्यो मनुष्य की ज्ञान-सत्ता बुद्धि-व्यवसा- यात्मक होती गई है। अब मनुष्य का ज्ञानक्षेत्र बुद्धिव्यवसायात्मक या विचारात्मक होकर बहुत विस्तृत हो गया है। अतः उसके विस्तार के साथ हमें अपने हृदय का विस्तार भी बढ़ाना पड़ेगा। विचारो की क्रिया से, वैज्ञानिक विवेचन और अनुसन्धान द्वारा, उद्घाटित परिस्थितियो और तथ्यो के मर्मस्पर्शी पक्ष का मूर्त और सजीव चित्रण भी -- उसका इस रूप में प्रत्यक्षीकरण भी कि हव हमारे किसी भाव का आलम्बन हो सके -- कवियों का काम होगा।

ये परिस्थितियाँ बहुत ही व्यापक होगी, ये तथ्य न-जाने कितनी बातो की तह में छिपे होंगे। यदि अत्याचार होगा तो