उसे इससे बाहर के किसी तथ्य का—जिसका कुछ ठीक ठिकाना नहीं—सूचक बताना हम सच्चे कवि का क्या सच्चे आदमी का काम नहीं सममते।
अब थोड़ा "अज्ञात की लालसा" का विचार भी कर लेना चाहिए जिसका निरूपण अबरक्रोंबे ने मज़हबी ढंग पर अपने "संत थूमा का आत्म-विक्रय" (Sale of St. Thomas) नामक काव्य में किया है। ईसाइयो में एक प्रवाद प्रचलित है कि ईसा के चेले थूमा दक्षिण भारत में उपदेश करने आए थे। उसी प्रवाद के आधार पर यह कविता रची गई है। ईसा थूमा को भारतवर्ष में प्रचार के लिए भेजते हैं और वे भाग-भाग आते हैं। जब वे दूसरी बार भागने पर होते हैं, तब हज़रत ईसा उनसे कहते हैं—
"थूमा! अपना पाप समझो। तुम डर से नहीं भागे हो, न कि आदमी एक बार डर से सिट-पिटाता है, पर फिर साहस कर के सब प्रकार की आपत्तियाँ झेलने के लिए तैयार हो जाता है। तुम भागे हो अपनी बुद्धिमानी और दूरदर्शिता के कारण। यह बुद्धिमानी भी बड़ा भारी पाप है क्योंकि यह मनुष्य की अन्तः प्रकृति में निहित अज्ञात शक्तियों पर विश्वास नहीं करने देती। उनकी प्रेरणाओं को यह सस्ते अनुभवलब्ध विवेचन के पलड़े पर रख कर तोलती है। यह लालसा को ज्ञान या विचार के घेरे में डाल कर संकुचित करती है। पर यह समझ रखो कि मनुष्य उतना ही बड़ा हो सकता है जितना बड़ा उसका अभिलाप होगा।