पृष्ठ:काव्य में रहस्यवाद.djvu/४

यह पृष्ठ प्रमाणित है।

 

वक्तव्य

यह निबन्ध केवल इस उद्देश्य से लिखा गया है कि 'रहस्यवाद' या 'छायावाद' की कविता के सम्बन्ध में भ्रान्तिवश या जान-बूझकर जो अनेक प्रकार की बे-सिर-पैर की बातों का प्रचार किया जाता है, वह बन्द हो। कोई कहता है "यही वर्त्तमान युग की कविता है"; कोई कहता है "इसमें आजकल की आकांक्षाएँ भरी रहती हैं" और कोई समझता है कि "बस, यही कविता का रूप है।" किसी सभ्य जाति के साहित्य-क्षेत्र में ऐसे-ऐसे प्रवादों का फैलाना शोभा नहीं देता।

मैं 'रहस्यवाद' का विरोधी नहीं। मैं इसे भी कविता की एक शाखा विशेष मानता हूँ। पर जो इसे काव्य का सामान्य स्वरूप समझते हैं उनके अज्ञान का निवारण मैं बहुत ही आवश्यक समझता हूँ।

काशी, रामचन्द्र शुक्ल
विजया-दशमी,
सं° १९८६