पृष्ठ:काव्य में रहस्यवाद.djvu/३७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३२
काव्य में रहस्यवाद


अब देखिए कि उक्त दोनों उक्तियों की अपेक्षा कवीरदासजी की नीचे दी हुई दो उक्तियाँ, जो लोकगत या अनुभवसिद्ध तथ्यो को सामने रखती हैं, कितनी मर्मस्पर्शिणी हैं। देहावसान सबसे अधिक निश्चित एक भीषण तथ्य है। उसके निकट होने की कैसी मूर्तिमान् चेतावनी इस साखी में है–

बाढ़ी आवत देखि करि तरिवर डोलन लाग।
हमैं कटे की कुछ नहीं, पंखेरू घर भाग॥

"हवा से हिलता पेड़ मानो बढ़ई को आता देख कॉपता है—बुढ़ापे से हिलता शरीर मानो काल को पास पहुंचता देख थर्राता है। शरीर कहता है कि हमारे नष्ट होने की परवा नहीं; हे आत्मा! तू अपनी तैयारी कर।"

ऐसी एक और उक्ति लीजिए—

मेरो हार हिरानो मैं लजाउँ।
हार गुह्यो मेरो राम-ताग, विचि-विचि मानिक एक लाग।
पंच सखी मिली हैं सुजान, 'चलहु त जइए त्रिवेनी न्हान'।
न्हाइ धोइ कै तिलक दीन्ह, ना जानूँ हार किनहि लीन्ह।
हार हिरानो, जन विलम कीन्ह। मेरो हार परोसिनि आहि लीन्ह।

यह उस मन के खो जाने का पछतावा है जो ईश्वर का स्मरण किया करता था। जीवात्मा कहता है कि "मुझे पचेन्द्रियाँ वहका कर त्रिगुणात्मक प्रवाह में अवगाहन कराने ले गईं जहाँ मेरा मन फंस गया। उसी मन के प्रेम को लेकर मुझे उस प्रिय के पास जाने का अधिकार था। अब उसके विना जाते नहीं बनता।