पृष्ठ:काव्य में रहस्यवाद.djvu/१६०

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सजीव बना दिया है। कविताएँ इतनी सरल और सरस हैं कि उन्हें बालक भी बड़े चाव से पढ़ सकते हैं। भाव ऐसे अनोखे हैं कि पढ़कर तबीयत फड़क उठती है। उर्दू-शैली ने कविता में और भी रुचि उत्पन्न कर दी है। कई कविताओं में लालाजी की ओजस्विनी लेखनी ने कमाल कर दिया है। अभी तक लालाजी की उत्तमोत्तम कविताओं का ऐसा सर्वाङ्ग-सुन्दर कोई संग्रह नहीं निकला था। पृष्ठ-संख्या लगभग १५०, सत्रह चित्र, बढ़िया कपड़े की जिल्दसहित पुस्तक का दाम २)

५—विहारी-बोधिनी
(टीकाकार—लाला भगवानदीनजी)

बिहारी-सतसई कितनी अच्छी पुस्तक है यह बतलाने की जरूरत नहीं, यह एक अनमोल रत्न है। पर कठिन इतनी है कि बड़े-बड़े लोग भी इसके दोहों का अर्थ करने में धोखा खा जाते हैं, और अर्थ ही नहीं समझते। इसी कठिनाई को दूर करने के लिये बिहारी-सतसई की यह टीका प्रकाशित की गई है। इसकी समानता की बाजार में कोई टीका नहीं है। काग़ज़ और छपाई इत्यादि बहुत सुन्दर, लगभग ४०० पृष्ठ की ऐण्टिक काग़ज़ पर छपी सचित्र पुस्तक का दाम १।॥), रफ काग़ज़ का अजिल्द १।//)

६—सूर-पंचरत्न
(संपादक—लाला भगवानदीनजी)

यह पुस्तक बनारस हिन्दू यूनीवर्सिटी, इलाहाबाद यूनीवर्सिटी की बी° ए° परीक्षा तथा मध्यप्रान्त और बिहार आदि की अनेक