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काव्य में रहस्यवाद


बेडौल चट्टानो पर अपनी जड़ो का जाल फैलाए वृक्षों की निबिड़ और सघन राशि। प्रकृति के खण्डो के ऐसे-ऐसे संश्लिष्ट और श्रृंखलाबद्ध चित्रण उनके "इसलाम का विप्लव" (The Revolt of Islam) आदि काव्यो में भरे पड़े है जैसे कहीं किसी रहस्य- वादी कवि की रचना मे नही मिल सकते। रहस्यवादी की काव्य- दृष्टि एक बार मे इतने विस्तार तक पहुॅचती ही नही या पहुॅचाई ही नहीं जाती।

शेली की पिछली रचनाओ में ही कही-कहीं रहस्य-भावना का उन्मेष पाया जाता है। "सौन्दर्य बुद्धि की स्तुति" ( Hymn to Intellectual beauty) नाम की कविता मे शेली ने उस नित्य गतिशील सौन्दर्य-सत्ता का स्तवन किया है जो समय-समय पर बाह्य प्रकृति को वसन्त-विकास के रूप में अपने नाना रंगो से जगमगाया करती है और मनुष्य के हृदय को प्रेम, आशा और गर्व से प्रफुल्ल किया करती है। कहने की जरूरत नहीं कि यह भावना गत्यात्मक सौन्दर्य्य की अभिव्यक्ति को ही लेकर चली है। स्त्रीत्व का आध्यात्मिक आदर्श व्यंजित करनेवाली "एपिसिडियन" (Epipsychidion) नाम की कविता भी इसी ढंग की है। "जिज्ञासा" का उल्लेख पहले हो चुका है। ऐसी ही कुछ थोड़ी-सी छोटी छोटी कविताओ मे रहस्य-भावना पाई जाती है; पर ऐसी नही जो रहस्यवादियो के काम की हो। मेरे ध्यान मे तो शेली की एक ही ऐसी छोटी-सी कविता आती है जिसमें रहस्य- वादियों के काम की कुछ सामग्री है। वह है -- "कवि-स्वप्न"