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काव्य में रहस्यवाद


अद्भुत और भव्य चमत्कार ढूॅढ़नेवाली दृष्टि को मैं मार्मिक काव्य- दृष्टि नहीं मानता।

जैसा पहले कहा जा चुका है केवल कहीं-कही वर्ड्सवर्थ ने प्रकृति की अन्तरात्मा (Spirit of Nature) की ओर संकेत किया है; एकआध जगह प्रकृति के ही किसी तथ्य के भीतर परोक्ष जगत् का भी आभास दिया है, जैसे, "वाल्यावस्था की स्मृति-द्वारा अमरत्व का संकेत" (Ode on Intimations of Immortalityf rom Recollections of Early Childhood) नाम की कविता मे। उसमें कवि कहता है --

"हमारा जन्म एक प्रकार की निद्रा या विस्मृति है। जीवन के नक्षत्र हमारी आत्मा का -- जिसका उदय हमारे साथ होता है -- विधान कही अन्यत्र ही हुआ करता है। वह किसी दूर देश से आती है। आने मे न तो हम मे एक दम विस्मृति ही रहती है, न शुद्ध-रूपता ही। ईश्वर के पास से हम दिव्य और भव्य घन-खंडों मे से होते हुए आते हैं। बचपन में हमारे चारो ओर स्वर्ग का आभास कुछ-कुछ बना रहता है। पर ज्यो-ज्यों बालक बढ़ता जाता है त्यों-त्यो इस भव्य कारागार की छाया में बन्द होता जाता है। फिर भी उस ज्योति का आभास उसे कुछ काल तक अपने आनन्द में मिलता रहता है। युवावस्था की ओर बढ़ता हुआ वह यद्यपि अपने उदय की दिशा से दूर होता जाता है, पर प्रकृति का पुजारी तब भी बना रहता है। उसका मार्ग दिव्य सौन्दर्य्य की भावना से जगमगाता रहता है। अन्त मे जब वह बढ़कर पूरा