प्रकृति के नाना रूपों के साथ अपने हृदय के योग का अनुभव
करते। उनका प्रकृति प्रेम कुतूहल, विस्मय और सुख-विलास की
मनोवृत्ति से सम्बद्ध न था। वे अलौकिक, असामान्य, अद्भुत
और भव्य चमत्कार ढूॅढ़नेवाले न थे। नित्य प्रति सामने आनेवाले
चिर-परिचित सीधे-सादे सामान्य दृश्यो के प्रति अपने सच्चे
अनुराग की व्यंजना जैसी वर्ड्सवर्थ ने की है, और जगह नहीं
मिलती।
जो एक पुरानी गढ़ी के आसपास लगे पेड़ो के झुरमुट के
कटवाने पर दुखी होता है, ऐसे सच्चे प्रकृति-प्रेमी कवि को 'रहस्य-
वादी' कहना उसकी अप्रतिष्ठा करना है। "एक पथिक को शिक्षा"
(Admonition to a Traveller) नाम की एक छोटी-
सी कविता में वर्ड्सवर्थ ने एक नागरिक पथिक को किसी ग्राम
मे छोटे-से नाले के तट पर, थोड़ी-सी गोचारण-भूमि के बीच खड़े
एक छोटे-से झोपड़े को ललचती आँखो से देखते देखकर, कहा
है -- "उस घर का लालच न कर। बहुत-से तेरे ऐसे लोग इसी
तरह
ताकते और सोचते-विचारते रह जाते हैं। उनकी चले तो
वे प्रकृति की पुस्तक के इस बहुमूल्य पत्रे को अपवित्र निष्ठुरता
से नोच फेकें। यह समझ रख कि यह घर यदि आज तेरा हो
जाय तो जो कुछ आकर्षण इसमे है वह सब हवा हो जाय।
इसकी छत, खिड़की, दरवाज़े, चढ़ी हुई फूल की लताएँ सब दीनो
की पवित्र वस्तुएँ हैं।" प्रकृति के प्रति जो भाव वर्ड्सवर्थ का था
उसी को मैं सच्चे कवि का भाव मानता हूँ। सदा असामान्य,