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काव्य में रहस्यवाद


शुद्ध काव्यदृष्टि प्रदान करने में सहायक हो सकती है, विचारने की बात है।

यह ठीक है कि भिन्न-भिन्न रहस्यवादी कवियो की दृष्टि में थोड़ा-बहुत भेद रहता है, कुछ कवि 'लोकवाद' भी लिए रहते हैं, पर यह भी उतना ही ठीक है कि सब इस दृश्य और गोचर जगत् से परे एक अभौतिक जगत् की ओर झाँकने का दावा करते हैं। इस सम्प्रदाय के वर्तमान कवियों में एक मिस मकाले (Rose Macaulay) हैं जिन्होंने सन् १९१४ ई० में "दो अन्ध देश" (The Two Blind Countries) नाम की एक छोटी-सी पुस्तक में अपनी कविताओं का संग्रह निकाला है। इसमें उन्होंने नाना सुन्दर रूपो और व्यापारों से जगमगाते हुए इस भौतिक जगत् का बड़ी सहृदयता से निरीक्षण किया है, पर इसे चारो ओर वेष्ठित किए हुए एक दूसरा मडल या जगत् भी उन्हे दिखाई पड़ा है, जो भौतिक न होने पर भी सत्य है। इस अभौतिक जगत् का उन्हें इतना प्रत्यक्ष आभास मिलता है कि कभी-कभी वे सन्देह में पड़ जाती हैं कि वे दोनो मे से किस जगत् की हैं। उनके देखने में नाना कौतुकपूर्ण रूपों से युक्त इस छायामय जगत् में आत्मा एक परदेसी की तरह घूमती-फिरती आ जाती है। यहाॅ वह ज्ञानद्वार की दूसरी ओर से (अर्थात् अगोचर जगत् से) किसी और ही जगत् के लोगो की परदे मे दबी हुई-सी वाणी आती हुई सुना करती हैं।


  • Only through a creek in the door's blind face

He would reach a thieving hand,