पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/६९

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बूचर ने अनुभावों को कार्य के अन्तर्गत माना है, क्योंकि सब कुछ मानसिक जीवन को प्रकाशित करते है ; विवेकी व्यक्ति के व्यक्तित्व को अभिव्यक्त करते हैं, ' अर्थात् मानसिक भावों के उद्बोधक कार्य ही अनुभाव है। ____ इसमें सन्देह नहीं कि हमारे प्राचार्यों ने मनोवेगों के बाह्य अभिव्यञ्जकों अर्थातू शारीरिक अनुभावों का सूक्ष्म निरीक्षण किया है। भय एक स्थायी भाव है । इसके अनुभाव अनेक हैं, जिनमें “मुंह का फीका पड़ जाना, गद्गद स्वर होना, मूर्छा, स्वेद और रोमांच होना, कप, चारों ओर देखना आदि मुख्य है ।।२ इसी बात को डार्विन साहब भी कहते है कि "भय में कंप, मुख सूखना, गद्गद स्वर, घबड़ाहट से देखना आदि लक्षण दीख पड़ते हैं।"3 शारदातनय के श्रान्तर भावों तथा बाह्य शारीरिक विकारों के सम्बन्ध का जो सूक्ष्म विवेचन किया है, उससे उनकी मनोविश्लेषणशक्ति का जो परिचय मिलता है वह विस्मयसनक है। उन्होंने सात्विक के अतिरिक्त दस मानसिक, बारह वाचिक, दस शारीरिक और तीन बौद्धिक अनुभावों का उल्लेख किया है ; इनमें कुछ के अवान्तर भेद भी किये हैं। ____यह बात ध्यान देने योग्य है कि साहित्यिक अनुभाव लौकिक चित्तधृत्ति- जनित कार्यों के अनुरूप ही हैं तथापि यथार्थतः लौकिक चित्तवृत्ति के कार्य-स्वरूप होते हुए भी अनुभाव साहित्यिक रसात्मक चित्तवृत्ति के कारण हैं, क्योंकि रसनिष्पत्ति में इनका भी संयोग आवश्यक है ।"४ भाव कोषकार ने तो 'चित्त, मन, हृदय, स्वान्त आदि को एकार्थक मानकर एक साथ ही पद्य में गूंथ दिया है, किन्तु शास्त्रकारों ने इनको विशेषता का पृथक- १ Everything that expresses the mental life, that reveals a rational personality, will full within this large sense of action. २. अनुभावोऽत्र बबण्यं गद्गद स्वरभाषणम् । प्रलयस्वेदरोमाञ्चकम्पदिक्प्रेक्षणादयः ॥ ३. One of the best symptoms is the trembling of all the muscles. From this cause the dryness of the mouth, the voice becomes hursky or indistinct or may altogether fail. The uncovered and protruding eye balls are fixed on the object of terror as they may roll from side to side. ४. विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्तिः । नाट्यशास्त्र ५. चित्तं तु चेतो हृदयं स्वान्तं हन्मानसं मनः । भमर