पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/५६

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लिए 1 इसीसे कार्लाहल ने कहा है कि. "हम काव्य को संगीतमय विचार कहते है। अर्थ अर्थ शब्द के अनेक अर्थ हैं। साहित्य-शास्त्र में किसी शब्द-शक्ति के ग्रह अथवा ज्ञान से संकेतित, लक्षित वा द्योतित जिस व्यक्ति की उपस्थिति होती है उसे अर्थ कहते हैं। यहाँ व्यक्ति शब्द से केवल मनुष्य-प्राणी का अर्थ नहीं लेना चाहिए, किन्तु उन सभी मूर्त, अमूर्त द्रव्यों का व्यक्ति, जाति या आकृति के द्वारा अपनी पृथक् सत्ता रखते है। शब्द और अर्थ का सम्बन्ध ही शक्ति है। यह सम्बन्ध वाच्य-वाचक के नाम से अभिहित होता है। उसी सम्बन्ध के विचार से प्रत्येक शब्द अपने अर्थ को. उपस्थित करता है। बिना सम्बन्ध के शब्द मे किसी अर्थ के बोध कराने की शक्ति. नहीं रहती। सम्बन्ध उसे अर्थवान् बनाता है, उसमें शक्ति का संचार करता है। संकेत और उसके ज्ञान की सहायता से शब्द का अर्थबोध होता है। संकेत-- ग्रहण-शब्द और अथं का सम्बन्ध-ज्ञान अनेक कारणों से होता है। उनमें व्याकरण, व्यवहार, कोष श्रादि सुप्रसिद्ध है। ___ साक्षात् संकेतित अर्थ के बोधक व्यापार को अभिधा कहते हैं। यह मुख्य अथं की बोधिका प्रथमा शक्ति है। अभिधा अर्थ ग्रहण कराती है। अभिधा का कार्य बिम्बग्रहण कराना भी है। इसीको अर्थ का चित्र-धर्म भी कहते हैं। इसीसे काव्य मे चित्र-चित्रण, दृश्योपस्थापन तथा मूतिविधान संभव है। अर्थ के चित्र-- धर्म से अपारस्फुट भाव भी परिस्फुट हो जाता है। ___ जय हम कहते हैं कि 'वह रो रही थी' तो कोई चित्र उपस्थित नहीं होता। पर जब कहते हैं कि 'आँखो से आंसू उमड़ रहे थे और अोठ फड़फड़ा रहे थे तो एक रोने का रूप खड़ा हो जाता है। इसके लिए उपयुक्त शब्द-विधान आवश्यक है। यही कवि का लक्ष्य भी होना चाहिये। 2 Repeat me these verses again for I always love to hear poetry twice, the first time for sound and later for senes. The Rudiment of Criicism. २ Poetry, therefore, we will call musical thoughts. ३ व्यक्तिस्तु पृथगात्मता। अर्थात् अन्य वस्तुओं से किसी वस्तुविशेष का निरालापन । अमर