पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/५२७

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सोलहवीं छाया कुछ अन्य अलंकार वर्गीकरण के अतिरिक्त कुछ प्रसिद्ध चमत्कारक अलंकारों का निर्देश किया जाता है। ७० ललित (Artful Indication) वर्णनीय वृत्तान्त को स्पष्ट न कहकर उसके प्रतिबिंब वा छाया के, वर्णन किये जाने को ललित अलंकार कहते है। । अरे विहंग लौट अब तेरा नीड़ रहा इस वन में । छोड़ उच्च पद की उड़ान वह क्या है शून्य गगन में ?--गुप्त गोपी ने स्पष्ट यह न कहकर कि मथुरा का राज-विलास छोड़कर हे कृष्ण । गोकुल चले श्राश्रो, छाया के रूप में कहा गया है। सुनिय सुधा देखिय गरल सब करतूति कराल । जहँ तह काक उलूक बक मानस सकृत मराल ।-तुलसौ यहाँ यह न कहकर कि कहाँ राम का राज्य होनेवाला था और कहाँ हो गया। वनवास । 'सुनिय सुधा' आदि के रूप में यही कहा गया है, जो प्रतिबिब मात्र है। ७१ अत्युक्ति (Exaggeration) सम्पत्ति, सौन्दर्य, शौर्य, औदार्य, सौकुमार्य आदि गुणों के मिथ्या. वर्णन को अत्युक्ति अलंकार कहते हैं। भूली नहीं अभी मैं वह दिन कल की ही तो है यह बात, सोने की घड़ियाँ थीं अपनी चाँदी की थी प्यारी रात । मै जमीन पर पॉव न धरती छिलते थे मखमल पर पैर, आँखें बिछ जाती थीं पथ में मैं जब करने जाती सैर । भक्त सम्पत्ति और सोकुमायं के वर्णन में अत्युक्ति है। वह मृदु मुकुलों के मुख में भरती मोती के चुम्बन ? लहरो के चल करतल में चांदी के चंचल उडुगण ।-पंत चांदनी का अत्युक्ति-पूण वर्णन है; पर है अनुपम और अपूर्व । पगली हाँ सम्हाल ले कैसे छट पड़ा तेरा अंचल । देख बिखरती है मणिराजी अरी उठा बेसुध चंचल । प्रसाद रात्रि का मानिनी-रूप में यह अत्युक्ति-पूर्ण वणन है। नये कवियों ने इसके नये रूप दे डाले हैं।