पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/५१८

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मौलित ४३६ यहाँ उपमेय मुख की सामथ्र्य से उपमान चन्द्रमा को अनावश्यकता बताकर उसका अनादर दिया गया है। ५५ मीलित (Lost) जहाँ दो पदार्थों में सादृश्य न लक्षित हो वहाँ यह अलंकार होता है। पान पीक अधरान में सखी लखो ना जाय । कजरारी अंखियान में कजरा री न लखाय !-प्राचीन लाल ओठों में पान को पीक और काली आँखो में काजल मिलकर एक रंग हो गये हैं। वे आमा बन खो जाते शशि किरणों की उलझन में, जिससे उनको कण-कण से हूँढ़ पहिचान न पाऊँ ।- महादेवी यहां वे ( रहस्यमय प्रिय ) चन्द्रमा की चांदनी में ऐसे एकरग हो खो जाते हैं कि मै हूँ'द नहीं पाती। नीचे का अलंकार इसी के सम्बन्ध का है। ५६ उन्मीलित ( Unlost) जहाँ दो पदार्थों के सादृश्य में भेद न होने पर भी किसी कारण भेद का पता लग जाने का वर्णन हो वहाँ उन्मीलित अलंकार होता है। चपक हरवा गर मिलि अधिक सोहाय । जानि पर सिय हियरे जब कुम्हिलाय ।-तु. गले के रंग में मिला चंपकहार कुम्हलाने पर ही गोरे अग से पृथक् लक्षित होता है। सम्मिलित उदाहरण- भर गयी अमल धवल चार चन्द्रिका, मानो भरा धुग्धफेन भूतल से नम लौं। रात बनी मूत्तिमती 'शुक्लाभिसारिका'। आ रही है निज को छिपाये सित वस्त में, अलकार मीलिता सदेह देखा कवि ने किन्तु नीलिमा थी निशानाथ के कलंक के वह उन्मीलित का सहज स्वरूप था।-आर्यावर्त