पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/५१०

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४३० काव्यदर्पण ___ यहाँ प्रेम का वेदना के हाथों द्वारा बना होना सिद्ध करने के लिए चौथी पंक्ति में कारण उक्त है। इसमें पृथक्-पृथक् पदों में कारण उक्त है । श्याम गौर किमि कहाँ बखानी। गिरा अनयन नयन बिनु बानी। प्रशंसा की असमर्थता का अपूर्व कारण पूरे वाक्य में उक्त है । टिप्पणी-परिकर अलंकार में पदार्थ या वाक्यार्थ के बल से जो अर्थ प्रतीत होता है उसीसे वाच्यार्थ पुष्ट होता है और काव्यलिग में पदार्थ या वाक्याथं ही कारण होता है। उसमें अर्थान्तर की आकांक्षा नहीं रहती। अर्थान्तरन्यास में अपने कथन को युक्तियुक्त बनाने के लिए समर्थन होता है और काव्यलिग में कार्यकारण सम्बन्ध रहता है, जिससे एक का दूसरे से समर्थन होता है। इसमें सभी प्राचार्य एकमत नहीं है। ४४ अनुमान ( Inference ) हेतु द्वारा साध्य का चमत्कारपूर्वक ज्ञान कराये जाने को अनुमान 'अलंकार कहते हैं। हॉ वह कोमल है सचमुच ही वह कोमल है कितना मै इतना ही कह सकता हूँ तेरा मक्खन जितना । बना उसी से तो उसका तन तूने आप बनाया। तब तो आप देख अपनों का पिघल उठा उठ धाया। गुप्त यहाँ मक्खन से बने होने के कारण ताप से पिघल उठना रूप साध्य का चमत्कारपूर्ण वर्णन है। तेरहवीं छाया वाक्य-न्यायमूल अलंकार वाक्य न्यायमूल में १ यथासंख्य, २ पर्याय, ३ परिवृत्ति, ४ परिसंख्य, ५ अर्थापत्त, ६ विकल्प, ७ समुच्चय और ८ समाधि, ये आठ अलकार हैं । ४५ यथासंख्य या क्रम ( Relative Ordea) क्रमशः कहे हुए पदार्थों का उसी क्रम से जहाँ अन्वय होता है वहाँ न्यथासंख्य, यथाक्रम वा क्रम अलंकार होता है।