पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/४८०

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४०० काव्यदर्पण एक समय जो ग्राह्य दूसरे समय त्याज्य होता है। उष्मा में हिम के कंबल का भार कौन ढोता है ?-गुप्त इसमें 'स्याज्य' और 'भार कौन ढोता है' दूसरे-दूसरे शब्दों में एक ही धर्म कहा गया है। दोनों में उपमेय-उपमान भाव है। मानस में ही हंस-किशोरी सुख पाती है। चार चाँदनी सदा चकोरी को भाती है। सिंह सुता क्या कभी स्यार से प्यार करेगी ? क्या पर नर का हाथ कुल-स्त्री कभी धरेगी ?-रा० च० उ० यहाँ चौथी पक्ति उपमेय वाक्य और तीसरी पंक्ति उपमान वाक्य हैं। 'प्यार' करना' और 'नर का हाथ धरना' इन दोनों शब्द-भेदों से एक ही धर्म-स्त्री अन्य पुरुष से कभी प्रेम नहीं करती, कहा गया है। ऐसे ही पहली और दूसरी पंक्तियो में भी उपमेय-उपमान भाव है और भिन्न-भिन्न पदों 'सुख पाना' और 'भाना'- द्वारा एक हो धर्म कहा गया है । १६. दृष्टान्त ( Examplification) जहाँ उपमेय, उपमान और साधारण धर्म का बिम्बप्रतिबिंब भाव हो वहाँ दृष्टान्त अलङ्कार होता है। ___ दृष्टान्त अलङ्कार से किसी कही हुई बात का निश्चय कराया जाता है। इसमे धर्म का पार्थक्य होते हुए भी भाव का साम्य देखा जाता है। अर्थात् दोनों का साधारण धर्म एक न होने पर भी दोनों की समता दिखाई देती है। प्रतिवस्तूपमा में एक ही समान धर्म शब्द-भेद द्वारा कहा जाता है और दृष्टान्त में उपमेय-उपमान के वाक्यों में भिन्न-भिन्न समान धर्म का कथन होता है । एक राज्य न हो बहुत से हों जहाँ, राष्ट्र का बल बिखर जाता है वहाँ । बहुत तारे थे अँधेरा कब मिटा, सूर्य का आना सुना जब तब मिटा ।-गुप्त पूर्वाद्ध में राष्ट्र के बल बिखरने की बात है और उत्तराद्ध में बहुत तारों के रहने की ; पर दोनों के साधारण धर्म भिन्न-भिन्न हैं। स दृश्यवाचक शब्द नहीं है। इस प्रकार इनका विव-प्रतिबिब भाव है। सकल सम्पत्ति है मम हाथ में, सुख-सुधानिधि है तब हाथ में । जलधि में मणि-माणिक शक्ति हैं, सुरधुनी कर में पर मुक्ति है।-उपा. यहाँ भी बिब-प्रतिविब भाव होने से दृष्टान्त है । माला दृष्टान्त और वैधयं दृष्टान्त भी होते हैं। मुनियों की दुर्दशा देख रघुपति घबराये; निज दुख मन से तुरत उन्होंने दूर भगाये। .