है। आत्ममुक्ति और आत्म-क्रीड़ा के लिए करता है, यह सब ठीक है। भवभूति भी कहते हैं कि मेरे समान उपभोक्ता, आनन्द लेनेवाला कोई उत्पन्न होगा- 'उत्पत्स्यते सपदि कोऽपि समानधर्मा'। अतः, सिद्ध है कि कवि का व्यक्तित्व पाठक और कवि, दोनों की सत्ता से ही प्रतिष्ठित होता है। साहित्यकार की साहित्यिक सृष्टि ही संसार से सार्वजनीन सम्बन्ध स्थापित करती है । आज कुछ व्यक्ति 'कला प्रचार के लिए' ( Art for propaganda's sake ) को भी रट लगा रहे हैं। कहते हैं कि "कला श्रेणी-संघर्ष का एक यन्त्र है। दरिद्र श्रमिक-संघ अपने एक अस्त्र के हिसाब से ही उसका व्यवहार करेगा।" हिन्दी में भी ऐसे ही विचार से बहुत-सा साहित्य प्रस्तुत हो रहा है; पर यह .सब समय को गति मे बह जायगा । स्थायित्व की दृष्टि से प्रगतिवादियों के दृष्टिकोण में भी परिवर्तन पा गया है और ऐसी कविताये कभी-कभी दिखायी पड़ जाती हैं, जो यथार्थ कविता कही जा सकती है। __काव्य और संगीत काव्य और वस्तु है, संगीत और । किन्तु, दोनों का पारस्परिक सम्बन्ध एकान्त घनिष्ठ है। काव्य की कल्पना, संगीत का राग, दोनों अभिन्न हैं। जिस काम को भाव-जगत् में कल्पना करती है, उसी काम को शब्द-जगत् में राग करता है। इसलिए एक अँगरेजी विद्वान् ने लिखा है-"कविता शब्दों के रूप से संगीत है और संगीत स्वर-रूप में कविता है।"२ अभिव्यक्ति की पूर्णता के लिए काव्य को नाना इंगित-श्राभासों का सहारा लेना पड़ता है। इनमें चित्र और संगीत मुख्य हैं। संगीत काव्य का रस है और चित्र रूप । ध्वनि प्राण हैं, चित्र शरीर । इस प्रकार काव्य दृश्य द्वारा हमें चित्रकला की ओर ले जाता है और छन्द द्वारा संगीत के निकट । आचार्य शुक्ल के शब्दों में "छंद वास्तव में बँधी हुई लय के भिन्न-भिन्न ढाँचों ( patterns ) का योग है, जो निदिष्ट लंबाई का होता है । लय-स्वर के चढ़ाक- उतार स्वर के छोटे-छोटे ढाँचे ही हैं, जो किसी छद के चरण के भीतर व्यस्त रहते हैं।” हिन्दी कविता में छन्द के लिए अनुप्रास - तुक भी आवश्यक समझा गया है। पंतजी के शब्दों में 'तुक राग का हृदय है, जहां उसके प्राणों का स्पंदन विशेष रूप १. Art, an instrument in the class struggle must be developed by the proletariat as one of its weapons. Proletarian Literature U.SA.. २. Poetry is music in words and music is poetry in sound.
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