Rawala boralia A अनुपालका बारहवाँ प्रकाश अलङ्कार पहली छाया (Figure of speech in words) शब्दालंकार अनुप्रास शब्द के रूप हैं-वनि (Sound) और अर्थ (Sense)। ध्वनि को लेकर शब्दालंकार को सृष्टि होती है । यह काव्य का एक संगीत धर्म है। अर्थ को लेकर अर्थालंकार को सृष्टि होती है। यह काव्य का चित्र धर्म है । इनके आधार पर प्रधानतः अलंकार के दो भेद हैं-शब्दालंकार और अर्थालंकार । जहाँ दोनों अलङ्कार होते हैं वहां उभयालंकार होता है। शब्दों के कारण जहाँ चमत्कार हो वहाँ शब्दालङ्कार होता है। शब्दालङ्कार नाम पड़ने का कारण यह है कि जिस शब्द वा जिन शब्दों द्वारा चमत्कार पैदा होता है, तदर्थवाचक भिन्न-भिन्न शब्दों द्वारा वह चमत्कार रहने नहीं पाता, ऐसे अलंकार शब्दाश्रित होते हैं, अर्थाश्रित नहीं। कुछ शब्दालङ्कार वर्णगत, कुछ शब्दगत और कुछ वाक्यगत होते हैं। छेकानुप्रास आदि शब्दगत और लाटानुप्रास आदि वाक्यगत होते हैं। . शब्दालङ्कार अनेक प्रकार के हैं। उनके मुख्य भेदों का यहाँ वर्णन किया जाता है १ अनुप्रास ( Aliteration) जहाँ व्यंजनों को समता हो वहाँ अनुप्रास होता है। स्वर की विषमता में भी अनुप्रास होता है। इसके पांच भेद होते हैं- (१) छेकानुप्रास, (२) वृत्यानुप्रास, (३) श्रुत्यानुपास, (४) लाटानुपास और (५) अन्स्यानुप्रास। (१) जहाँ अनेक वर्गों की एक बार समता हो वहाँ छेकानुप्रास होता है। जैसे, लपट से झट रूख जले-जले नदनदी घट सूख चले-घले विकल ये मृग मीन मरे मरे विकल ये दृग दीन भरे-भरे । - गुप्त
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