३५४ काव्यदर्पण इसमें राधा-सी नायिका के पृथ्वी पर कहीं न कहीं होने की संभावना की गयी है। इसमें अलंकार की क्या बात है ? संभावना से कोई चमत्कार तो इसमें श्राता नहीं, बल्कि राधा को-सी नायिका के होने की संभावना करके उसके सौन्दर्य के महत्त्व का ह्रास ही कर दिया गया है। २. इसका भाई एक संभावना अलंकार भी है 'यदि ऐसा होता तो ऐसा होता', यही इसका लक्षण है। उगै जो कातिक अंत की चन्दा छाडि कलंक । तो कहु तेरे बदन की समता लहै मयंक ॥ इसमें वही बात है जो कहना चाहते हैं। वाच्यार्थ में कोई चमत्कार नहीं है। इनमें यह भेद भी दिखा दिया गया है कि पहले में निश्चय नहीं रहता और इसमें रहता है। ३. असम्भव भी इसी के आगे-पीछे है। को जानै था गोप-सुत गिरि धारंगो आज यहाँ 'को जानै था' वाक्यांश असम्भवता सूचित करता है। यहां भी कुछ चमत्कार नहीं है। सम्भव-असम्भव की बात कहना अलंकार-कोटि में नहीं श्रा सकता। ४. एक भाविक अलंकार है, जिसमें भूत और भविष्य के भावों का वर्तमान में वर्णन किया जाता है। अवलोकते ही हरि सहित अपने समक्ष उन्हें खड़े, फिर धर्मराज विषाव से विचलित उसी क्षण हो गये। वे यत्न से रोके हुए शोका फिर गिरने लगे फिर दुःख के वे दृश्य उनकी दृष्टि में फिरने लगे ।-गुप्त यहाँ भूतकालिक दुःख का प्रत्यक्ष को भाँति वर्णन किया गया है। इसमें अलंकार के लिए क्या रखा है ? अनुभूत भूतकालिक भाव का कारण-विशेष से जाग्रत होना ही तो है । इसमें चमत्कार क्या है ? भाविक अल कार से इसको क्या विभूति बढ़ती है ? ५. तद्गुण अलंकार का तमाशा देखिये-- लखत नीलमनि होत अलि कर विद्रुम विखरात । मुकता को मुकता बहुरि लख्यो तोहि मुसकात ।। मोती को जब देखती है तब नीलमणि, हाथ में लेती है तब मूंगा और जब 'हसतो है तब फिर मोती हो जाता है। . .
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