अलंकार के कार्य ३५१ वहां फूल-सी एक बाला' के उपमा-अलंकार ने प्रेम-परायण हृदय की उत्कण्ठा के भाव को बड़े ही मनोरम रूप में व्यंजित ही नहीं किया है उसको उत्कृष्ट भी बना दिया है। २-(क) वस्तुओं के रूप का अनुभव तीव्र कराने में सहायक अलंकार- नील परिधान बीच सुकुमार, खुल रहा मृदुल अधखुला अंग । खिला हो ज्यों बिजली का फूल, मेघ बन बीच गुलाबी रंग ।-प्रसाद इसमें 'श्रद्धा' को रूप-ज्वाला उपमा-अल कार से और भी भभक उठी है । लता भवन ते प्रकट भे तेहि अवसर दोउ भाइ । निकसे जन युग विमल विधु जलद पटल बिलगाइ।-तुलसी लता-भवन से प्रगट होते हुए दोनों भाइयों पर मेघ-पटल से निकलते हुए दो चन्द्रमाओं को उत्प्रेक्षा की गयी है । यहाँ अलंकार प्रस्तुत दृश्य के सौन्दर्य को द्विगुणित कर देता है। सब ने रानी की और अचानक देखा वैधव्य तुषारावृता यथा विधुलेखा। बैठी थी अचल तथापि असंख्य तरंगा, अब वह सिंही थी हहा गोमुखी गंगा। -सा० विधवा रानी तुषारावृत विधुलेखा-सी धली पड़ गयी थी। कहां वह सिहो थी और अब कहाँ गोमुखी गंगा। यहां का रूपक-गर्भित उपमा-अलंकार रानी की दशा के चित्रण में ऐसा सहायक हुआ है कि भाव उत्कृष्ट हो नहीं सजीव हो उठा है। (ख) गुणानुभव को उत्कृष्ट बनानेवाले अलंकार- सुख भोग खोजने आते सब आये तुम करने सत्य खोज । जग की मिट्टी के पुतले जन तुम आभा के मन के मनोज ।-पन्त यहाँ का व्यतिरेक-अलंकार महात्माजी के अलौकिक गुणो का अनुभव कराने में सहायक है। अयोध्या के अजिर को व्योम जानो, उदित जिसमें हुए सुरवैद्य मानो। कमल-दल से बिछाते भूमितल में, गये दोनों विमाता के महल में।-सा० दशरथ की दुःख-दशा दूर करने में राम हो एकमात्र सहायक हैं, इसकी सुर- वैद्य की उत्प्रेक्षा पुष्ट करती है और कमल-दल को उपमा राम-लक्ष्मण के चरण- कमल की कोमनता, सुन्दरता तथा अरुणिमा के अनुभव को तीव्र वनाती है। ओ चिन्ता की पहली रेखा अरे विश्व बन की व्याली । ज्वालामुली स्फोट के भीषण प्रथम कम्प-सी मतवाली। हे अभाव की चपल बालिके, री ललाट की खल-लेखा।-प्रसाद
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