पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/४१६

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काव्यदर्पण कालरिज ने इसी को 'उत्तम शब्दों की उत्तम रचना' कहा' है। यह पद- संघटना है ; पर यह पद-संघटना वैशिष्ट्य-मूलक है । वह विशिष्टता शब्दों की है। कैसे शब्द कहाँ रक्खे जायें, यही रीति है और इसका विचार ही रीति को रूप- रेखा है । कैसे शब्द का अभिप्राय शब्द को योग्यता से है। देखना होगा कि जिस शब्द का प्रयोग किया जा रहा है वह विषय, भाव, संस्कार के अनुकूल है या नही । भाषा के सौंदर्य और माधुयं, विषय और वर्णन के योग्य है या नहीं। अनन्तर उसके स्थान का विचार करना होगा। कहां रखने से वह अपना वैभव प्रकाशित कर सकता है। ऐसा होने से ही रोति को मर्यादा अतुपण रह सकती है। विषयानुरूप रचना में कहीं मधुर वर्गों की और कहीं श्रोज-प्रकाशक वर्गों को आवश्यकता होती है; कही सरल शब्द, कहीं सालंकार शब्द और कहीं सुन्दर शब्द योग्य प्रतीत होते हैं तथा कहीं कणंकटु कठोर शब्दों का रखना ही अच्छा जान पड़ता है। कहने का अभिप्राय यह है कि वर्णनीय विषयों की विभिन्नता के कारण रीतियों की विभिन्नता अनिवार्य है। यह रचनाकार की योग्यता, विद्वत्ता और महृदयता पर निर्भर करता है कि कौन शब्द कहां कैसे रक्खें कि रचना सुन्दर तथा सुबोध हो। उत्तम रीति वह है, जिसमें अपना भाव व्यक्त करने के लिए चुने हुए शब्द हों। सुन्दर और चुस्त एक वाक्य के लिए चार वाक्य न बनाये जायें। थोड़े में प्रकाशित होनेवाले अभिप्राय को व्यर्थ का तूल न दिया जाय । क्योंकि, यही रचना- शैथिल्य का कारण होता है। पेटर का कहना है कि जो तुम कहना चाहते हो परल, सीधे और ठीक तरह से फिजूल बातों को छोड़कर कहो। रीतियाँ अनेक हैं। कारण यह है कि एक प्रकृति दूसरे से नहीं मिलती। 'मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना'। एक ही विषय को भिन्न-भिन्न कवि भिन्न-भिन्न ढंग से वर्णन करता है । राधाकृष्ण के शृङ्गार-वर्णन को छोड़िये । पंचवटी-प्रसंग एक ही है; पर तुलसीदास, गुप्तजी और निरालाजी के वर्णन की रीतियां भिन्न-भिन्न है। इससे दण्डी का कहना है कि प्रत्येक कवि में व्यक्तित्वानुरूप रहने के कारण रीति के मेद कहे नहीं जा सकते। The best words in the best order. २ Say what you have to say, what you have a will to say, in the simplest, the most direct and the exact manner possible, with no surplusage. • . ३ इति मार्गदयं मिन्नं तस्वरूपनिरूपणात १. तक्मेदास्त न शक्यन्ते वक्त प्रतिकवि स्थितः ।