पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३९४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

शब्द-दोष तीसरे चरण के पूर्वाद्ध में वाक्य के समाप्त होने पर भी उत्तराद्ध में उसीका पुना वर्णन कर दिया गया है। २३. अन्तिरैकवाचक-पद के पूर्वाद्ध के वाक्य का कुछ अंश यदि उत्तरार्द्ध में चला जाय तो वहां यह दोष होता है। सुनकर धर्म का आरोप धीरे से हंसा विज्ञान- बोला, छोड़ कर यह कोप दो तुम तनिक तो अवधान । यहाँ 'बोला' उत्तरार्द्ध में चला गया है, यह दोष है । पर अब यह दोष नहीं रह गया है; क्योंकि अतुकान्त या स्वच्छन्द छन्द में अधिकतर ऐसे हो वाक्य प्रयुक्त होते हैं। २४. अभवन्मतसम्बन्ध-जिस पद्य में वर्णित पदार्थों का सम्बन्ध ठीक नहीं बैठता वहाँ यह दोष होता है। फाड़ डाले प्रेमपत्रों में छिपी जो विकलता थी बेकसी सारी हमारी मूर्त पायी कुनमुनाती । यहाँ 'फाड़ डाले' का सम्बन्ध ठीक नहीं बैठता। यदि 'फाड़ डाले' को प्रेम- पत्रों का विशेषण मानें तो इसमें कोई पूर्णार्थक क्रिया नहीं रह जाती। क्योंकि 'जो' का प्रयोग है । 'प्रेमपत्रों में कहने से कम का रूप नहीं रह जाता । विकलता के लिए 'फाड़ डाले' क्रिया नहीं हो सकती । अविमृष्टविधेयांश में सम्बन्ध बैठ जाता है। २५. अनभिहितवाच्य-उल्लेखनीय पद का उल्लेख न करना हो यह दोष है। चतुर पाठक इस कथा से लीजिये उपदेश धनी और दरिद्र में है नहीं अन्तर लेश! यहाँ के 'लेश' के साथ 'मात्र' या 'भी' का होना आवश्यक है। ऐसा होने से हो यह भाव निकल सकता है कि 'धनी और दरिद्र में लेशमात्र भी (थोड़ा-सा भी) अन्तर नहीं।' आवश्यक पद के न रहने से यह भी अयं निकल सकता है कि लेश मात्र नहीं ज्यादा अन्तर है। न्यून पद में वाचक पद की और इसमें द्योतक पद को आवश्यकता होती है। २६. अस्थानपदता-पद्य में प्रत्येक पद का अपने उचित स्थान पर रहना ही उत्तम है, पर जहां ऐसा नहीं होता वहां यह दोष होता है। मेरे जीवन को एक प्यास, होकर सिकता में एक बंद कवि का भाव एक सिकता से है। पर अस्थान में एक के होने से यह भी अर्थ हो सकता है कि एक बार बंद होकर । इससे बन्द के पूर्व नहीं, सिकता के पूर्व ही 'एक' होना चाहिये था।