पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३८९

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३०६ काव्यदर्पण ८. अवाचक-जिस शब्द का प्रयोग जिस अर्थ के लिए किया जाय उस शब्द से वांछित अर्थ न निकले तो यह दोष होता है। कनक से दिन मोती सी रात सुनहली साक्ष गुलाबी प्रात । मिटाता रेंगता बारंबार कौन जग का यह चित्राधार । चित्राधार का अर्थ है चित्र रखने की वस्तु-अलबम । पर यहां चित्रकार का अर्थ अभीष्ट है। चित्राधार से यह अर्थ-जगत् का कौन चित्रकार है जो दिन- रात और प्रातःसन्ध्या को सुनहले, रूपहले, पीले और गुलाबी रंगों से बारंबार रंगता और उन्हें मिटाता है, लिया गया है। ६. अश्लील-जहाँ लज्जा-जनक, घृणास्पद और अमंगल-वाचक पद प्रयुक्त हों वहां वह दोष होता है। (क) धिक् मैथुन-आहार यन्त्र । (ख) रहते चूते में मजदूर । (ग) चोरत है पर उक्ति को जे कवि है स्वच्छन्द वे उत्सर्ग र बमन को उपभोगत मतिमंद । (घ) मधुरता में मरी-सी अजान । 'क' 'ख' के मैथुन-यन्त्र और चूते शब्द लज्जाजनक हैं । यद्यपि यहां चूते का अर्थचूते हुए छप्पर के नीचे है। 'ग' में उत्सर और वमन घणाव्यञ्जक शब्द हैं। उत्सर्ग का अर्थ मल भी होता है। 'घ' में 'मरी-खो' शब्द अमंगल- सूचक है। टिप्पणी-कामशास्त्र-चर्चा में ब्रीड़ा-व्यजक, वैराग्य-चर्चा में वीभत्सता- व्यंजक और भावी चर्चा में अमंगल-व्यंजक पद अश्लील दोष से दूषित नहीं माने जाते। १०. ग्राम्य-वारो को बोलचाल में आनेवाले शब्दों का साहित्यिक रचना में जहाँ प्रयोग हो वहाँ दोष होता है । (क) कैसे कहते हो इस 'दुआर' पर अब से कभी न पाऊँ । (ख) भोजन बनावे 'निको' न लागे। पाव भर दाल में सवा पाव 'नुनवा। कबीर (ग) बूटि खाट घर टपकत 'टटिओ' यूटि । पिय के बाह 'उससवा' सुख के लूटि । ले के सुघर 'खुरपिया' पिय के साथ । छइबे एक छतरिया बरसत पाय।-रहीम

  • इनमें दुबार, नीको और नुनवां, टटियो, खुरपिया आदि ग्राम्य प्रयोग के

अमने हैं।