पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३७८

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एकांकी २६५ बोलता है। हिन्दी में भारतेन्दु का लिखा 'वैदिकी हिला हिसा न भवति ऐसा हो एकपात्री श्राकाशभाषित है, जिसका उल्लेख हो चुका है। सेठ गोविन्ददास के 'चतुष्पथ' में भिन्न-भिन्न प्रकार के चार 'मोनोड्रामा' संगृहीत हैं। 'प्रलय और सृष्टि' में एक ही पात्र है और कई लधु यवनिकाएँ हैं । 'अलबेला' एक एकांकी नाटक है, जिसमें पात्र एक आदमी और उसका घोड़ा है। 'शाप और वर' दो भागों में एक नाटक है, जिसमें एक दम्पति पात्र है । 'सच्चा जीवन' एक 'आकाशभाषित' एकांकी नाटक है। सिनेमा भी नाटक का ही एक रूप है। इसमें संवाद ही को प्रधानता रहती है, वर्णन की सहीं। कारण, अध्ययन के लिए सिनेमा में संवाद प्रस्तुत नहीं होता। सिनेमा का ऐसा संवाद जहां उपदेश और वर्णन के भाव से विस्तार पाता है वहां उद्वजक हो जाता है। उसमें अनावश्यक गीतों की अवतारणा भी अरुन्तुद होती है । हिन्दी में ऐसे संवाद लिखनेवालों के नाम चित्रपट में दिखायी पड़ते हैं । हिन्दी के कलाकार भी सिनेमा में पहुँचे हैं; पर असाहित्यिक निर्देशक के निर्देश के कारण उनको स्वतन्त्रता रहने नहीं पाती। उन्हें चाहिए कि हिन्दी-साहित्य को समुन्नात और उसकी मर्यादा का ध्यान रखकर ही जो लिखना हो, वे लिखें।