पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३५९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

छठी छाया गद्य-रचना के भेद गद्य-कवियों की कसौटी नहीं होता, बल्कि गद्य-लेखकों को भी कसौटी होता है। पद्य के समान गद्य में रागात्मिका वृत्तियों को ही नहीं, बोधात्मक वृत्तियों को भी प्रश्रय मिलता है । गद्य हृद्गत बातों को विस्तृत रूप से प्रकट करने का जैसा क्षेत्र है वैसा पद्य नही । इससे जो लेखक अपने भाव गद्यात्मक भाषा में स्वच्छन्दतापूर्वक व्यक्त नहीं कर सकता वह सुलेखक नहीं हो सकता, वह प्रतिभाशाली लेखक नहीं कहा जा सकता। इससे पद्य को अपेक्षा गद्य का महत्त्व कम नहीं। ____गद्य-रचना के क्षेत्र अनेक हैं, जिनमें मुख्य है-उपन्यास, कहानी, नाटक और निबन्ध । इनके अतिरिक्त जीवन-चरित्र और यात्रा या भ्रमण हैं। अन्यान्य प्रकार की भी गद्य-रचनाएँ हो सकती हैं; किन्तु इनका हो साहित्यिक रचना से विशेष सम्बन्ध है। इनसे विलक्षण गद्य-काव्य की रचना होती है। गद्य-काव्य कहने ही से यह ज्ञात हो जाता है कि काव्य के रस, कल्पना, चमत्कार आदि गुण उसमें रहते हैं। क्रमशः इनका वर्णन किया जाता है। __उपन्यास को मनोरंजक साहित्य ( light literature ) कहते हैं। इससे इसकी रचना का रोचक होना आवश्यक है। उपन्यास ही कल्पनाकौतुक और कला- कौशल के प्रदर्शन करने का विस्तृत क्षेत्र है। जिस उपन्यास से मनोरंजन के साथ मानस में नूतन शक्ति और उत्साह का संचार हो, उसका महत्त्व बढ़ जाता है। सच्चा औपन्यासिक वह है, जो चरित्र-चित्रण के बल से जोवन को गुत्थियों को सुलझाता और प्रकृति के रहस्यों को खोलता है। अच्छे उपन्यास देश, समाज और राष्ट्र के उपकारक होते हैं। उपन्यास के मुख्य चार विषय है, जिनमें पहला है कथावस्तु या उपन्यास- तत्त्व (plot of the novel)। इसके भीतर वे मानवीय घटनाएँ या व्यापार आते हैं जिनके आधार पर उपन्यास खड़ा होता है। अभिप्राय यह कि उपन्यास के लिए वही उपादान आवश्यक हैं, जो मनुष्य-मात्र के जीवन-संग्राम में-उसकी सफलता या विफलता में व्यापक रूप से वर्तमान रहता है और हृदय पर प्रभाव डालता है। इसके लिए निम्न बातों पर ध्यान देना चाहिये- १ कथावस्तु चित्ताकर्षक हो, २ कथा बेमेल न हो, ३ श्रावश्यक बातें छूटने न पावे,४कथा का क्रमभंग न हो, ५ पात्र-कथन का असम्बद्ध विस्तार न हो, ६ घटनाएँ शृङ्खलित हों और मूलाधार से पृथक न हों, ७ कथावस्तु के विस्तार में मनोरंजन और आकर्षण का बराबर खयाल रहे, ८ साधारण बातों को भी आकर्षक रूप में