पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३५१

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गीति-काव्य का स्वरूप २६७ हेय नहीं है। यही कारण है कि गीति कविताएं भिन्न-भिन्न प्रकार की होती हैं । गीति-कविता को भाषा में सरसता, सरलता, सुकुमारता और मधुरता होना आवश्यक है । प्रौढ़िप्रदर्शन, मनगढन्त शब्दों के मनमाने प्रयोग, कला के नाम पर अनुपास आदि का त्याग, पाण्डित्यप्रकाशक कठिन वा दार्शनिक शब्दों की ठूस ठास अप्रसिद्ध शब्दों की भरमार, सापेक्ष और सार्थक शब्दों की न्यूनता, शब्द-ध्वनि का प्रयास और छोटे-छोटे छन्दों में गूढ भावों का समावेश अनावश्यक हैं। ____सभी कवि अपनी भावना के अनुभूतिजन्य आवेग को, जीवन की मार्मिकता को गीति-कविता में अखण्ड रूप से प्रकाशन की क्षमता नहीं रखते, जो इसके लिए आवश्यक है। एक ही अविच्छिन्न उन्मुक्त भावना इसका मेरुदण्ड है। ऐसी रचना मनोवेगात्मक होती है। कवि के अन्तःकरण में कोई भावना उमड़-घुमड़कर बाहर निकल पड़ती है और गोति रूप में उसके अन्तर को खोलकर रख देती है। सभी कवि गीतिकार नहीं हो सकते । सोच- विचारकर, जोड़-तोड़कर गीति-कविता नहीं लिखी जा सकती। सच्ची अनुभूति को गीति कविता भावुक श्रोता और पाठक को अपने रस में शराबोर कर देती है। एक प्रकार को गीति-कविता वह होती है, जिसमें कवि को संवेदनात्मक इच्छा- श्राकांक्षा, सुख-दु:ख, आशा-तृष्णा आदि की भावनाएँ रहती हैं। इसमें कवि की श्रारमा ही बोलती है। दूसरे प्रकार की गोति-कविता वह है, जिसमें कवि का हृदय- संयोग उतना प्रतीत नहीं होता। वह उदासीन सा प्रतीत होता है। किन्तु, उसमें भी कवि के व्यक्तित्व की छाप अवश्य रहती है। एक को अन्तमुखी और दूसरी को बहिमुखी गीति-कविता कहते हैं। . _____ गोति-कविता की शैसी सरल, तरल, संक्षिप्त, सुस्पष्ट होनी चाहिये । भाषा, भाव और विषय में जितना सामञ्जस्य होगा उतना ही गीति-काव्यपूर और प्रभाव- शाली होगा। गीति-कविता मे भात्र को स्वच्छता, भाषा का सौन्दर्य, वर्णन- विशेषता वाञ्छनीय है। ___ जिस गीति-कविता में शब्दों की सुन्दर ध्वनि, सुकुमार संदर्शन, सरल, सुन्दर तथा मधुर शब्द, कोमल कल्पना, संगीतात्मक छन्द, अनुभूति को विभूति भावानुकूल भाषा और कलापूर्ण अभिव्यक्ति हो, वह गीति-कविता प्रशंसनीय है। गोति-काव्य की रचना प्रेम, जीवन, देशभक्ति, दार्शनिक और धार्मिक भाव, करुणा, वेदना, दुख-दैन्य आदि विषयों को लेकर की जाती है। ___ गोति-काव्य विभिन्न प्रकार के होते हैं। उनमें व्यंग्यगीति, पत्र-गीति, शोकगोत, भावना-गोति, आध्यात्मिक गीति श्रादि मुख्य हैं। हिन्दी-संसार प्रकृत गीति-काव्यकारों से सर्वथा शून्य नहीं है ।