काव्यदर्पण तो 'बिटिया के प्रति माता का जो वात्सल्य प्रकट है, वह क्या किसीसे न्यून है ? यहां की उपमा तो उसे श्राकाश तक पहुँचा देती है। ___ इसमें सन्देह नहीं कि पुरुष की अपेक्षा स्त्रियाँ अधिक वत्सल होती हैं। अतः, माता के वात्सल्य का अधिक वर्णन पाया जाता है। गुप्तजी ने अबला-जीवन का जो करुण रूप खड़ा किया है उसमें वत्सलता का ही प्रथम स्थान है- अबला-जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी। आँचल में है दूध और आँखों में पानी ॥ छब्बीसवीं छाया वत्सल-रस-सामग्री जहाँ पुत्र आदि के प्रति माता, पिता आदि का वात्सल्य परिपूर्ण स्नेह की विभावादि द्वारा पुष्टि हो वहाँ वत्सल रस होता है। श्रालबन विभाव-पुत्र, पुत्री आदि। उद्दीपन विभाव-बालक की चेष्टाएँ, उसका खेलना-कूदना, कौतुक करना, पढ़ना-लिखना, वीरता श्रादि । संचारी भाव-अनिष्ट की आशंका, हर्ष, गर्व, आवेग आदि । स्थायी भाव-वत्सलतापूर्ण स्नेह । कबहूँ ससि माँगत आरि करै कबहूँ प्रतिबिंब निहारि डरै । कबहूँ करताल बजाइ के नाचत मातु सबै मनमोद भरे। कबहूँ रिसिआइ कहें हठि के पुनि लेत सोई जेहि लागि अरें। अवधेश के बालक चारि सदा 'तुलसी' मन-मन्दिर में बिहरै ॥ काव्यगत रस-सामग्री-चारों बालक माता के प्रालंबन है। बालसुलभ क्रोड़ायें उद्दीपन हैं । माताओं का मन में मोद भरना अनुभाव तथा हर्ष, गर्व आदि संचारी हैं। इनसे परिपुष्ट वत्सलरस व्यजित होता है । रसिंकगत रस-सामग्री-अपने बालकों की क्रीड़ायें देखनेवाली मातायें रसिकों के बालबन विभाव हैं। माताओं का आनंदित होना उद्दीपन विभाव है। नेत्राकुचन, मुखविकास, स्मित हास्य आदि अनुभाव हैं और संचारी हैं कौतुक- मिश्रित आदि। उत्तररामचरित का एक पद्यानुवाद देखिये- मो तन सो उत्पन्न किर्षों यह बालसरूप में नेह को सार है। के यह चेतना धातु को रूप करै कढ़ि बाहिर मंजु विहार है ॥
पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३१५
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।