पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/२७०

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१८४ काव्यदपण हर्षजनित शारीरिक चेष्टा श्रादि, (४) संचारी हैं हर्ष, वेग, गर्व आदि और (५) रति स्थायी है। इसमें जैसे उर्मिला को लेकर लक्ष्मण को आनन्द है, वैसे ही लक्ष्मण को लेकर रसिकों को । यहाँ अनुभाव आदि उक्त नही ; पर कवि अभिप्रेत समझकर यहाँ उक्त अनुभाव और संचारी का अध्याहार कर लिया गया है। देखहु तात वसन्त सुहावा, प्रियाहीन मोंहि डर उपजावा । यहाँ प्रिया आलंबन, वसन्त उद्दीपन, भय होना आदि अनुभाव तथा औत्सुक्य, चिन्ता आदि संचारी है। इनसे पुष्ट रति भाव से विप्रलंभ शृङ्गार व्यक्षित होता है । इसके निम्नलिखित चार भेद होते हैं-१ पूर्वराग, २ मान, ३ प्रवास औरं ४ करुण। १ पूर्वराग- ""क्या हुआ मैं मग्न थी अपनी लहर में पर न जाने दृष्टिपथ में आ गये वे क्या कहूँ री? वनकोलित से हुए उत्कीर्ण से मेरे हृदय में।-भट्ट यहां राधा आलंबन, दृष्टिपथ में आना उद्दीपन, वज्र-कोलित होना अनुभाव और हर्ष, विषाद, चिन्ता आदि संचारी हैं। कृष्ण के दृष्टिपथ में आने के कारण राधिका की जो अन्तर्वेदना है वही पूर्वानुराग है । इसे अभिलाषाहेतुक वियोग भी कहते हैं। चाहत दुरायो तो सों को लगि दुरावो दैया, ___सॉची हौं कहाँ री बीर सब सुन कान वै । सांवरो सी ढोटा एक ठाढौ तीर जमुना के, मो तन निहार्यो नीर भरी अंखियान है। वा दिन ते मेरी ही दसा को कुछ बूझै मति । चाहे ओ जिवायों मोहि वाहि रूप दान दै। हा हा करि पाय परों रह्यो नॉहि जाय घर, पनघट जान दै री पनघट जान है। -नायिका की अधीरता और कृष्ण-मिलन की उत्सुकता पूर्वानुराग सूचित करती है। दर्शन के चार भेद होते हैं-प्रत्यक्ष दर्शन, चित्र-दर्शन, स्वप्न-दर्शन और श्रवण-दर्शन । उक्त पद्यों में प्रत्यक्ष दर्शन है। आनन पूरत चन्द लसै अरविन्द, विलास विलोचन देके । . मंबर पीन हंस चपला कवि अंबुद्ध मेचक मंग उरेखे ।