पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/२०८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१२० काव्यदपा मान लेना, जो बवार्य में नहीं है । इनके मत में संयोग शब्द का अर्थ है 'सम्बन्ध', जो तीन प्रकार का होता है। उत्पाद्योल्पादक भाव, गम्यगमक भाव और पोष्यपोषक भाव । निस्पत्ति' शब्द के तीन अर्थ हैं-उत्पत्ति, अभिव्यक्ति और पुष्टि । विभाव उत्पाद्य-उत्पादक सम्बन्ध से रस को उत्पन्न करते, अनुभाव गम्यगमक भाव से रस को अभिव्यक्त करते और व्यभिचारी पोष्यपोषक भाव सम्बन्ध से रस को पुष्ट करते हैं। ___ दुष्यन्त और शकुन्तला का अभिनय करनेवाले नट यथार्थतः वे नहीं होते । उन दोनों का जो परस्पर प्रेम था वह उन्ही में था। वह नटों में कभी संभव नहीं। अतः वे दोनों अनुकार्य हैं और नट अनुकर्ता। विभावों से बालवित और उद्दीपित, अनुभावों से प्रतोति और संचारियों से परिपुष्ट रति श्रादि भाव ही रस हैं, जो मुख्यतः अनुकार्य दुष्यन्त-शकुन्तला मे होते है। फिर भी विभावादि क आकर्षक अभिनय में कुशल दुष्यन्त आदि के अनुकर्ता नटों पर और सुन्दर ढंग से काव्य पढ़नेवाले व्यक्ति पर उनका आरोप कर लेते हैं । अर्थात् दुष्यन्त और नट को भिन्न समझते हुए भी, उनको वास्तविकता को जानते हुए भी अभिनेताओं का दुष्यन्त आदि मान लेते हैं और उनके अभिनय कौशल से सामाजिक चमत्कृत होते हैं और आनन्द का उपभोग करते हैं। अर्थात् नट में समान रूप के अनुसन्धानवश आरोप्यमाण हो सामाजिकों के चमत्कार का कारण है। बारांश यह कि लौकिक सामग्री से दुष्यन्त आदि में हो रख उत्पन्न होता है और वही रस अनुकृतिवश सामाजिकों को अभिनेताओं में विभावादि के साथ आरोपित प्रतीत होता है। अतः यह रसप्रतीति अारोप्य-मान-जन्य है। अतः यह आरोपवाद है। शकुन्तला के विषय में जो रति है उससे युक्त यह अभिनेता दुष्यन्त हैं, इस ज्ञान के दो अश है-नट-विषयक ज्ञान लौकिक तथा शेष अलौकिक है। एक उदाहरण से समझ लीजिये। रामचरित हो रामायण है। उसकी अरण्य-लोला अपने अनुभव को घटना थी, लौकिक थो; पर जब उन्होंने अपनी हो लीला का अपने पुत्रो-लव-कुशों से रामायण के रूप में सुनो तो उस समय का उनका आनन्द अलौकिक था । वहाँ लौकिकता का लेश भी नहीं था।