पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/१७९

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६० काव्यदर्पण यमुना से कवि के इस प्रश्न में स्मृति की झलक है। कवि का उद्देश्य केवल यहाँ यही है कि प्राचीन काल के गौरव और सौन्दर्य को विहंगम दृष्टि से सामने ला! दे। यहाँ हर्ष आदि का भाव प्रकट करना उद्देश्य नही। यहां स्मृति संचारी रूप में है और भावात्मक । ___पनघट व्याकुल नहीं था। जड़ में चेतन का भावावेश कभी संभव नहीं। पनघट में लक्षण-लक्षणा द्वारा पनघट पर की चंचल बज्रबालात्रा की व्याकुलता का भाव लिया गया है। यहाँ विशेष-विपर्यय से भावना के आधिक्य की व्यजना ___इस प्रकार प्रत्येक संचारी भाव का विचार करने से उनका मनोविकार होना . सिद्ध होता है। यह बात ध्यान देने योग्य है कि जिन आचार्यों ने इनको भावसंज्ञा दो है, वे क्या यह नहीं समझते थे कि 'विकारो मानसो भावः।। हाँ, इसमें संदेह नहीं कि शरीर के साथ मन का घनिष्ठ संबंध है। मानसिक तथा शारीरिक दोनो तरह के विकार एक दूसरे से संगति रखते हैं। शारीरिक अवस्था के अनुकूल मन को भी गति होती है और इसोका विकास काव्य-साहित्य की भाव-भावनाएँ हैं। ___ भाव एक वृत्तिचक्र ( System ) जिसके भीतर बोधवृत्ति या ज्ञान (Cogni- tion ), इच्छा या संकल्प ( Conation ), प्रवृत्ति ( Tendency) और लक्षण (Symptoms ) ये चार मानसिक और शारीकि वृत्तियाँ पाती हैं। नवीन विद्वानों ने मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से संचारियों का जो वर्गीकरण किया है वह विवेचनीय है। 'मराठी रसविमर्श' से वह यहाँ उद्धृत किया जाता है। १ शारीरिक अवस्था के निदर्शक तेरह व्यभिचारी भाव हैं-ग्लानि, मद, श्रम, बालस्य, जड़ता, मोह, अपस्मार, निद्रा, स्वप्न, प्रबोध, उन्माद, व्याधि और मरण। ____२ यथार्थ भावनाप्रधान सात व्यभिचारी हैं औत्सुक्य, दैन्य, विषाद, हर्ष, वृति, चिन्ता और निर्वेद । ३ शंका, त्रास, अमर्ष और गवं ये चार स्थायी भाव के मूल-स्वरूप हैं। ४ ज्ञानमूलक मनोऽवस्था के चार व्यभिचारी हैं-मति, स्मृति, वितर्क और प्रवाहित्था। ५ मिश्रित भावना के दो संचारी है-बीड़ा और असूया । ६ भावना को तीन करनेवाले · तीन व्यभिचारी हैं-चपलता, आवेग और उग्रता। संचारियों में साधारणतः शंका, विषाद आदि दुःखात्मक है और हर्ष श्रादि' सुखात्मक।