पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/१६७

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

काव्यदर्पण १५. हर्ष इष्ट पदार्थ की प्राप्ति, अभीष्ट जन के समागम श्रादि से उत्पन्न आनन्द हो हर्ष है। इसमें रोमांच, मन की उत्फुल्लता, गद्गद वचन, स्वेद आदि अनुभव १ यह दृश्य देखा कवि चन्द ने तो उसकी ____फड़की भुजाएं कड़ी तड़की कवच की।-वियोगी २ मिल गये प्रियतम हमारे मिल गये यह अतल जीवन सफल अब हो गया कौन कहता है जगत है दुःखमय यह सरस संसार सुख का सिंधु है-प्रसाद भुजाओं के फड़कने श्रादि तथा प्रियतम के मिलने आदि से हर्ष संचारी व्यजित है। १६. आवेग किसी सुखकर वा दुःखद घटना के कारण, प्रिय वा अप्रिय बात के श्रवण से हृदय चव शान्त स्थिति को छोड़कर उत्तेजित हो उठता है तब उसे आवेग कहते हैं। इसमें विस्मय, रोमांच, स्तंभ, कप आदि कार्य होते है। 'हा लक्ष्मण हा सीते' दारुण प्रार्तनाद गूजा ऊपर । और एक तारक-सा तत्क्षण टूट गिरा सम्मुख भूपर। पौंक उठे सब हरे ! हरे ! कह हा मैंने किसको मारा माहत जम के शोणित पर ही गिरी भरत-रोवन-धारा । दौड़ पड़ी बहू दास-दासियाँ मूछित-सा था वह जन मौन, मरत कह रहे थे सहलाकर 'बोलो भाई ! तुम हो कौन ?'-गुप्त बाण लगने पर हनुमानजी के मुख से 'हा लक्ष्मण, हा सीते' का आनाद सुनकर भरतजी की जो तात्कालिक अवस्था यो उसमें आवेग से चारी व्यजित है। सुनी माहट पिय पगनि की भभरि भगी यों नारि । कहुँ कंकम कहुँ किकिनी ' कहूँ सुन पुर आरि।-प्राचीन वहाँ नायिका के आचरण से आवेग व्यन्ति है। १७. जड़ता इटानिष्ध के देखने-सुनने से चित्त को विमूहात्मक वृति का किकर्तव्यविमूढा- वस्या का माम माता है। इसमें अपलक देखना, सुमसुम रहना आदि अनुभाव चित्रित हो हो एक ध्यान विस्मृति-विमुष जन-कुख, महाम। ऐसा प्रसंगकामा विधान, चैतन्य बना सबका नबीन।-सो. द्विवेदी