काव्यदक्ष्य ६. श्रम मार्ग चलने, व्यायाम करने, जागरण श्रादि से उत्पन्न खेद का नाम भम है ! सम्हाई, अँगड़ाई, कामकाज में अरुचि, दीर्घश्वास लेना आदि इसके अनुभाव हैं। प्यासे काटे पग से लग लग तलवे चाट मांगते जल; झलके के मोती का पानी पिला उन्हें करती शीतल । कांटा हुई जबान प्यास से साँस फूलता है जाता; चासें ओर विकट मरुस्थली का है दृश्य नजर आता ।-भक्त इस उक्ति में गयास की पत्नी के श्रम संचारी की व्यंजना है। पुरते निकसी रघुवीर बधू परि धीर हिये मग में डग , मलकी भरि भाल कनी जल की पट सूखि गये मधुराधर वै । फिरि बूझति है चलनो अब केतिक पर्णकुटी करिही कित हूं। सिय की लखि आतुरता पिय को अंखिया अति चारु चली जल च्वै-तुलसी । यहाँ भी उसी श्रम संचारी को व्यं जना है। ७. आलस्य जागरण आदि से उत्पन्न अवसाद वा उत्साहहीनता, गम, व्याधि आदि के कारण कार्य-शैथिल्य आलस्य है। जम्हाई, अँगड़ाई, कामकाज में अरुचि प्रादि इसके अनुभाव हैं। दौड़ सकती थी जो न भार लिये गर्भ का वह धिक्कारती थी मन में ही पति को।-वियोगी नोठिमीठि उठि बैठिहू प्यौ प्यारी परमात । बोऊ नींद भरे खर गर लागि गिरि जात ॥-विहारी इन पद्यों से प्रालस्य व्यजित होता है। ८. दैन्य वा दीनता दुस-दारिद्र य, मनस्ताप आदि से उत्पन्न प्रोजन्विता का प्रभाव दीनता है। इसमें मलिनता आदि अनुभाव होते हैं। १ मर मिटे पिट गये सहा सब कुछ, पर लिबल को सुनी गयी न कहीं । है लिक बनी दुनिया है मिला हा निबाह नहीं। घर सिजाल होता है। और मनले महाल किसी के हैं। किलो गेहलोया या और कहीं ले जाते हैं धो के।
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