पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/१६२

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संचारी भावं आसीना थी निकर पति के अभ नेता यशोदा, छिन्ना दीना विनतवदना मोहमग्ना मलीना ।-हरिौष यहाँ यशोदा की दीन-दशा से ग्लानि की व्यञ्जना है। ३.शंका इष्टहानि और अनिष्ट का अन्देशा होना शंका संचारी है। इसमें मुखवैषपयं, स्वरभंग आदि अनुभाव होते हैं। हे मित्र मेरा मन न जाने हो रहा क्यों व्यस्त है? इस समय पल पल में मुझे अपशकुन करता त्रस्त है। तुम धर्मराज समीप रथ को शीघ्रता से ले चलो। - भगवान मेरे शत्रुओं की सव दुराशाएं बलो। गुप्त इसमें शंका संचारी व्यक्षित है। ४. असूया परोमति का असहन और उसको हानि की चेष्टा असूया है। इसमें अमादर, भौहें चढ़ाना, निन्दा श्रादि अनुभाव होते हैं । भरत राम के पास बनेगे तू कौशल्या-वासी- देषि, बनोगी, राम बनेगे सीता सहित विलासी। तब मै दासी की भी वासी बनी रहूँगी ईश्वर ।' हाय ! तुम्हारे सर्वनाश के कारण हुए महीश्वर । -रामचरित उपाध्याय इससे मन्थरा की असूया व्यंजित है । ५. मद यह अवस्था, जिसमें बेहोशी और आनन्द का मिश्रण हो, मद है। यह मद्य- पान आदि से उत्पन्न मस्ती, अल्हड़पन आदि अनुभावो की उत्पादिका है। १..................................""श्रवण कर 'यह संवाद फेंक जाम निज कर से । गोरी उठा सूमता सहारा लिया बढ़ के उस प्रहरी ने-उगमग पग परता, बाहर शिविर के निकट आया व्यन-सा-वियोगी १२ छकि रसाल सौरम सने मधुर माधुरी गंध । और और औरत अपत भौर-शोर मधु अंध --विहारों इन पचों में मद संचारी को व्यजना है।