पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/१५५

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६४ काव्यदर्पण ५. कंप क्रोध, भय, शीत, आनन्द आदि से यह उत्पन्न होता है। इसके कंप आदि अनुभाव है। १ चिबुक हिलाकर छोड़ मुझे फिर मायावी मुसकाया। हुआ नया प्रस्पन्दन उर में पलट गयी यह काया ।-गुप्त २ पहले दधि ले गई गोकुल में चल चारु भये नटगागर पै। 'रसखानि करी उन चातुरता कहैं दान दै दान खरे अरपै ॥ नख ते सिख ले पट नील लपेट लली सब भांति कँप उरपै । मनु दामिनी सावन के धन में निकसे नहीं भीतर ही तरपै ॥ कंप और रोमांच का एक साथ उदाहरण- ३ अरे बोलो, प्राण बोलो, बान ऐसी छोड़ दी क्यों! सभी जुम्भित गात्र मेरा सभी कंपित विश्व कानन अंग रोमांचित हुए हैं रोम हैं उबुद्ध चेतन सुन रहे रह-रह प्रमाथी अंग-अंग समुबरित से । भट्ट टिप्पणी-कुछ लोग जम्मा-जम्हाई को भी अनुभाव मानते हैं। उसका भी इसमें उदाहरण है। ६. वैवर्य मोह, क्रोध, भय, भ्रम, शीत, ताप आदि से इसकी उत्पत्ति होती है। मुंह का रंग बदलना, मुंह पर चिता की रेखा होना आदि इसके अनुभाव हैं। १ नव उमंगमयी सब बालिका मलिन और सशंकित हो गई। अति प्रफुल्लित बालक वृन्द का बबन मंडल भी कुम्हला गया ।-हरिऔध २ कहिन सकत कछ लाजते, अकथ आपनी बात । ज्यों-ज्यों निशि नियरात हैं त्यों-त्यों तिय पियरात ॥-प्राचीन ७. अश्रु आनन्द, भय, शोक, क्रोध, जम्भा आदि से यह उत्पन्न होता है। आँसू उमड़ना, गिरना, पोछना इसके अनुभाव हैं। १ रहो रहो पुरुषार्थ यही है पत्नी तक न साथ लाये । कहवे कहते वैदेही के नेत्र प्रेम से भर आये। २ मेव बिन लाने ऐसी बेदना बिसाहिबे को, __.: ... आज हो गई ही बाट वंशी बटवारे की।