काव्यदर्पण दसवीं छाया सात्त्विक अनुभाव के भेद रस-प्रकाशक होने के कारण सात्त्विक भाव भी अनुभाव ही हैं। सत्व का अर्थ रजोगुण और तमोगुण से रहित मन है ।' सत्त्व के योग से उत्पन्न भाव सात्त्विक कहे जाते है। सात्त्विक का एक अर्थ है जीवनक्रिया से संबंध रखनेवाले भाव, जैसा कि तरंगिणीकार ने कहा है। ____ सात्त्विक अनुभाव के पाठ भेद होते हैं-(१) स्तंभ (ठकमुरी या शरीर को गति का रुक जाना), (२) स्वेद (पसीना छूटना), (३) रोमांच (रोंगटे खड़ा होना), (४) स्वरभंग (घिग्घी बंधना या शब्दों का ठीक से उच्चारण न होना), (५) कंप (कँपकँपी), (६) वैवण्यं (पीरी पड़ना या प्राकृति का रंग बदल जाना), (७) अश्रु (आंसू निकलना) और (८) प्रलय (तन्मय होकर निश्चेष्ट या अचेत हो जाना)। १. स्तंभ हर्ष, भय, लज्जा, विस्मय, विषाद आदि से शरीर के अङ्गों का संचालन रुक जाना स्तंभ है। निष्कम्प होना, ठकमुरीं लगना, शून्यता, जड़ता श्रादि होना इसके अनुभाव है- १ मैं न कुछ कह सकी, रोक ही सकी न हाय! उन्हें इस कार्य प्रकार्य से विमूढ़-सी।-उदयशंकर भट्ट मत्स्यगन्धा की इस उक्ति में स्तंभ प्रकट है। २ देखा देखी भई, छूट तब से सकुच गई गिरि कुलकानि, कैसो घूघट को करिबो। लागी टकटकी, उर उठी धकधकी गति थकी, मति छकी ऐसो नेह को उघरिबो। चित्र कैसे लिखे वोऊ ठाड़े रसे काशीराम' नाहीं परवाह लोग लाख करो लरिबो। वंशी को बजेबो, नटनागर बिसरि गयो, नागरि विसरि गई गागरि को भरियो । बंशो का बजना और गागर का भरना, भूल जाना आदि से स्तंभ को प्रतीति है। २. रजस्तमोम्बामस्पृष्टं मनः सत्वमिहोच्यते ।-स-कंठामरण २. सत्यं जीवशरीरं तस्य धर्माः सात्विका । रसतरंगियो
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