पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/१५२

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अनुभाव इनके चार भेद हैं-( १ ) कायिक, (२) मानसिक, ( ३ ) आहार्य और (४) सात्त्विक । कायिक कटाक्ष आदि कृत्रिम आङ्गिक चेष्टाओं को कायिक अनुभाव कहते हैं। १ एक पल मेरे प्रिया के दृग पलक थे उठे ऊपर, सहज नीचे गिरे, चपलता ने इस विकंपित पुलक से । दृग किया मानो प्रणय-सम्बन्ध था।-पंत २ बहुरि ववन विधु अंचल ढाँकी, पियतन चित भौह करि बाँकी । खंजन मंजु तिरीछे नैननि, निज पति कहे उ तिनहिं सिय सैननि ॥-तुलसी मानसिक अन्तःकरण की वृत्ति से उत्पन्न हुए प्रमोद आदि को मानसिक अनुभाव कहते हैं। जैसे- ___ 'नाथ' ! कह अतिशय मधुरता से दबे सरस स्वर में. सुमुखि थी सकुचा गई । उस अनूठे सूत्र में ही हवय के भाव सारे भर दिये, ताबीज से ।-पन्त २ देखि सीय सोमा सुख पावा । हृदय सराहत वचन न आवा ॥ तुलसी आहार्य आरोपित या कृत्रिम वेष-रचना को आहार्य अनुभाव कहते हैं । जैसे, १ सखा साथ में वेण हाथ में, प्रीवा में वनमाला। केकि-किरीट पीत-पट भूषित रज-रूपित लट वाला ॥-गुसजी २ काकपक्ष सिर सोहत नीके, गुच्छा बिच-बिच कुसुमकली के ॥ तुलसी सात्त्विक शरीर के अकृत्रिम अङ्गविकार को सात्त्विक अनुभाव कहते हैं। थके नयन रघपति छवि देखी। पलकन हू परिहरि निमेखी ॥ तुलसी